लोहार सृष्टि मिथक
कलाकार: श्री हीरालाल, श्री नन्दलाल, श्री भग्गूराम, श्री संतोष, श्री पन्चूराम तथा श्री जयलाल
क्षेत्र: बस्तर, छत्तीसगढ़
लोहरीपुर के राजा सबरसाई के बारह बेटे और एक बेटी थी। बड़े होकर सबसे बड़े बेटे लोगुण्डी को राजा बना दिया गया तथा अंगारमती इन सबकी पत्नी बनी। लोहरीपुर की सड़कें, घर, सब लोहे के थे और बारह भाई जब धौकनी चलाते तो सब गर्म होकर लाल हो जाता। भूख लगने पर सब पिघला हुआ लाल-लाल लोहा ही खाते थे। एक बार धरती पर बारह वर्ष का अकाल पड़ा, सारे लोग भूख से त्राहि-त्राहि करते हुए भगवान के पास पहुंचे पर लोहरीपुर के वासियों को तो अकाल का पता भी नहीं चला था। भगवान को लगा कि हो न हो, लोगुण्डी उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली है। सूखी चमारिन को गर्म लोहे को ठण्डा करने का मंत्र आता था। भगवान उसे लेकर लोहरीपुर पहुंचे और खाना मांगने लगे। भोजन के नाम पर गर्म सलाखें और पिघले हुए लोहे का दलिया देखकर वे दोनों घबराये क्योंकि यह कुँवारा लोहा यानी नई भट्टी में पिघलाया गया पहला लोहा था और इसे ठण्डा करना सूखी चमारिन के बस का नहीं था। तब उन्होंने दूसरी चाल चली और कहा कि ये पानी से हाथ धोये बगैर कभी खाना नहीं खाते। लोहरीपुर में तो किसी ने पानी का नाम भी नहीं सुना था। भाई दूसरे गाँव से जब तक पानी लेकर आया तब तक भगवान जा चुके थे। लेकिन उसके पानी को छूने से इन सभी की गर्म लोहा पचाने की शक्ति खत्म हो गई थी और वे सब गर्म लोहा खाने पर जल कर भस्म हो गये. अंगारमती ने थोड़ा-सा ही लोहा खाया था, वह भागी भागी गोड स्त्री के घर रखे छाछ के बर्तन में जा कूदी, जिससे उसकी जान बच गई।
अंगारमती के गर्भ से ज्वालामुखी नाम के बेटे का जन्म हुआ। बड़े होकर उसने बड़ा सा लोहे का पिंजरा बनाया और उस तट पर जहाँ सूर्य और चन्द्रमा साथ खेलते थे, वहाँ जाकर उन्हें कैद कर लिया। पूरी धरती पर घुप्प अँधेरा छा गया। देवताओं के माफी मांगने पर और उन्हें सबसे बड़ा वीर मानने पर ज्वालामुखी ने उन्हें छोड़ा।
लोहे के इस द्वार में इस कथा के अतिरिक्त कठफोड़वा पक्षी को देखकर हथीड़ा बनाने कुत्ते के पाँवों को देखकर संडसी बनाने, सरई वृक्ष के फूल के लिये भीम द्वारा लोहरीपुर को जलमग्न करने की कथा भी दर्शाई गई है। साथ ही वन्य जीवन का भी चित्रण है।
THE LOHAR ORIGIN MYTH
Artists: Shri Hiralal, Nandlal, Bhagguram, Santosh, Panchuram and Jallal
Region: Bastar, Chhattisgarh
King Sabarsain of Lohripur had twelve sons and one daughter. When time came the eldest son, Logundi was crowned as the king and Angarmati became the wife of all the twelve brothers In Lohripur the roads and houses were all of iron and when the brothers began in their foundry, everything burned aglow. People there ate molten iron for food. So once when there was a drought, and the whole world turned up at the house of the God, Lohripur people remained oblivious of it all. This unsettled the God a bit and made him suspect Logundi as possessing more powers than Him. Sukhi Chamarin knew the trick to cool off hot iron, so accompanied by her, God entered Lohripur and asked for food. When they were served molten iron soup in a bowl, they were scared and asked for water to wash their hands with because Sukhi Chamarin realised that her tricks would not work with this virgin iron. In Lohripur they had never heard of water. They had to go to the next village in search of it and meanwhile God vanished. God’s trick however played havoc with the people there because no sooner had they touched water, than they lost their ability to eat hot iron and died as soon as they ate their food.
Angarmati however stopped after her first spoon, ran to a Gond house and jumped into the pitcher of butter-milk. She saved herself and also her son who was born after some time. He was called Jwalamukhi. When he grew up, he decided to avenge his father and uncles. Jwalamukhi made a big iron cage, went to the sea shore where the sun and moon played every day and caught them in his cage. Immediately there was darkness all over and a terrible chaos, The Gods had to descend from the heavens to look into the matter. It was only after they apologized to Jwalamukhi and acknowledged him as the bravest man, did he release the sun and the moon.
This is the myth that can be seen crafted in all its details on the iron gate here. Besides, the story of the making of the iron smithy tools taking inspiration from the cross legged dog and the woodpecker bird is also depicted.