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गंगा दुर्गा युद्ध की कथा-THE MYTH OF THE GANGA-DURGA CLASH

गंगा दुर्गा युद्ध की कथा

कलाकार: श्रीमती मणिमाला चित्रकार एवं गुरुपद चित्रकार

क्षेत्र: मिदनापुर, पश्चिम बंगाल

गंगा व दुर्गा यानी पार्वती के बीच का युद्ध इस लोकशैली में गाँव के किसी भी परिवार की स्त्रियों के बीच होने वाली रोचक नोंक-झोंक सा है ।

दुर्गा पूछती है- “ओ, पायिनी गंगा, तू हर की जटाओ में चढ़ी वहाँ क्या रही है?”

 गंगा “मैं चढ़ी नहीं बल्कि हर ने ही मुझे यत्न से जटाओं में संभाल रखा है ।“

दुर्गा- “सुनु तो जरा, ऐसे तेरे कौन से गुण है, जिनके कारण हर ने तुझे वहाँ संभाल रखा है?”

गंगा-“लोग कहते हैं कि मुझे धारण करने से हर पवित्र होते है ।“

दुर्गा- इस बड़बोली की बात सुनी, देवों के देव महादेव क्या कभी अपवित्र होसकते है?”

गंगा-“मैं पवित्र-अपवित्र क्या जानू, तू अपने पति से जाकर ही क्यों नहीं पूछ लेती?”

दुर्गा- “जबान संभाल कर बात कर, मैं क्या ऐसी बात पूछने जाऊँगी शिव पास?”

 गंगा-“अभी तो मैंने तेरे बखाने नहीं है वर्ना तो तेरी हड्डियों को ही घुन लग   जायेगा।”

दुर्गा-“आठ बेटों को हजम कर चुकी, मातृत्व पर कलंक तू मेरे गुन

बखानेगी?”

गंगा-“शान्तनु राजा विवाह करने पर मेरे बच्चे हुए वह तो अष्ट-वसु थे ऋषि के श्राप से मुक्त कराने के लिये ही मैंने पैदा होते ही उन्हें जल में फेंक दिया था, वर्ना कोई माँ ऐसा करती है? “मुझ पर आरोप लगाने वाली, त्रिलोक-तारिणी कहते हैं, सुनु तेरा परिचय क्या है इस दुनिया में?”

दुर्गा- “मुझ से बढ़ कर त्रिलोक में कोई सती नहीं, मेरे सत् से ब्रम्हाण्ड थर्राता है

गंगा-“वाह रे सती, अपने बेटे को ही पति बना लिया। जब निराकार शून्य भर था, तब तेरे ही भीतर से तो शिव का जन्म हुआ था। यह भली भाँति जानते हुए भी तूने शिव से ब्याह रचाया?”

दुर्गा-“मूर्ख, इसके बिना तो सृष्टि असम्भव थी। और यूँ भी शिव विवाह के पूर्व में एक सौ आठ जन्म ले चुकी थी ।

यह वाक –

 युद्ध इसी त्वरा से चलता जाता है इसके माध्यम से गंगा-दुर्गा से जुड़ी कथायें एक-एक कर खुलती जाती हैं। अंत में दोनों एक-दूसरे की शक्ति और वरीयता को मानते हुए मित्र बन जाती हैं। यहाँ सोरा यानी टेराकोटा की तवानुमा प्लेट पर यह कथा पटुआ चित्रशैली में बनाई गई है।

THE MYTH OF THE GANGA-DURGA CLASH

Artists Manimala Chitrakar and Shri Gurupad Chitrakar

Region Midnapur, West Bengal

In folk rendering, the tussle between Ganga and Durga sounds similar to the abusing yet fond verbal exchange between women in any Indian village. Durga wants to know, why Ganga is perched on Shiva’s head ? Ganga snaps back at her with it is Shiva himself who has folded me in his long tresses. Durga wants to know how Ganga qualifies for such an honour. Ganga says that her water is supposed to be purifying, Durga of course is furious at that “Hear this windbag! So, Mahadev, the god of gods needs her purifying touch, is it? Ganga retorts, “who am I to talk of pure and impure, why don’t you go and ask your husband?” “Hold it!” shouts Durga, you think I should bother Shiva over such trifles?”

Ganga-Well, bless yourself that have not yet begun to sing your praises!”

Dugra-‘Killing eight newborns, a blot on motherhood that your are, don’t you dare question my reputation.” Ganga-The infants that were born of me from king Shantanu were Ashta Vasu and I had to kill them to lift the curse off them, otherwise which mother would do such a thing? So easily you abuse me, yet, the world knows me as Trilok-tarini. What about you?”

Durga-‘None can equal my virtue. The world trembles at my power”

Ganga-Well done virtuous lady, married your own son? In the beginning you alone as primordial energy permeated the world, Shiva himself was born of you. With this knowledge, how could you take him for your husband?

Durga-“You dumb! How would have creation happened otherwise? Besides, I had already taken 108 births and rebirths before I married Shiva.” So on and so forth, this debate proceeds all the way unravelling many myths related to Ganga and Durga. In the end, each acknowledges the other’s virtue and power and eventually the rivals strike a chord of friendship. The myth is painted and sung by the Patua painters of Bengal. Here the myth has been painted on sora, or a terracotta plate.