यह मंदिर रथ भारत के कर्नाटक राज्य के उडुपी जिला के ग्राम पेरनानकिला के कृष्ण मठ से वर्ष 1995 में संकलित किया गया है। स्थानीय रूप से उपलब्ध साग बल्ली, कटहल, बबूल आदि की लकड़ी से निर्मित इस रथ का उपयोग ग्राम के गणेश एवं शिव मंदिर समूह में रथोत्सव में किया जाता है । उत्सव के दौरान देवताओं की रथ में प्राण प्रतिष्ठा कर ग्राम वासियों एवं आस पास के क्षेत्र से आए भक्तों द्वारा रथ को खींचा जाता है । रथोत्सव एक ऐसा पर्व है, जिसमें भगवान स्वयं भक्तों के बीच आते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी होते हैं । इस उत्सव में जन समूह देवी देवताओं के सम्मान में भजनों को गाते एवं नृत्य करते हुए रथ के साथ-साथ चलते हैं । ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धाभाव से इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। उडुपी में लकड़ी की नक्काशी के कारीगर होयसला राजवंश के समय निर्मित मंदिरों के शैल-शिखरों पर उत्कीर्ण शैलियों से प्रेरित हैं । इन कारीगरों को गुडीगर कहते हैं। कुशल और अनुभवी कारीगर रथ निर्माण के लिए शिल्प शास्त्रों के नियमों का पालन करते हैं। जटिल कलाकृति के उत्कीर्णन हेतु साग बल्ली की कोमल लकड़ी का एवं रथ निर्माण हेतु कटहल एवं बबूल जैसे कठोर लकड़ी का उपयोग किया जाता है। रथ बनाने के प्रत्येक चरण में रथ के लकड़ी को धूल, नमी, दीमक, पानी और कीड़े के आक्रमण से बचाने के लिए प्राकृतिक तेल लगाते हैं। रथ के बाहरी हिस्सों पर पौराणिक महत्व की धार्मिक, सामाजिक घटनाओं के साथ जीवन में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को भी उकेरा जाता है।
Pernankila Chariot / Ter-
This temple chariot has been collected in the year 1995 from the Krishna Math of village Pernankila in the Udupi district of Karnataka state, India. Made of locally available wood of Saag Balli, Jackfruit, Acacia etc. this chariot is used in the Car festival in the Ganesh and Shiva temple group of the village. During the festival, after installing the deities, the chariot is pulled by the villagers and the devotees who come from the surrounding area. Car festival is an important festival in which the Lord himself comes among the devotees and participates in their happiness and sorrow. In this festival, groups of people walk along with the chariot, singing hymns and dancing in honor of the deities. It is believed that the devotee who pulls this chariot with reverence, gets the results equivalent to a hundred ‘Yajan’. Wood carving craftsmen in Udupi are inspired by the styles engraved on the rock-tops of temples built during the Hoysala dynasty. These artisans are called Gudigars. Skilled and experienced craftsmen follow the rules of Shilp Shastras for making chariots. The soft wood of Sag Balli is used for engraving intricate artwork and hard wood like jackfruit and acacia are used for making chariots. At each stage of making the chariot, natural oil is applied to the wood to protect it from the effects of dust, moisture, termites, water and insects. Along with religious, social events of mythological importance, natural events occurring in life are also engraved on the outer parts of the chariot.