कुम्हार का आवा
कलाकार: श्रीमती सारा इब्राहिम एवं श्री इब्राहिम कासम
क्षेत्र: कच्छ, गुजरात
पुराने समय में कुम्हार के बर्तन पकने में छः महीने लगा करते थे। एक दिन कुम्हार ने अपनी नियाणी (आवा) सुलगाई ही थी कि भागते हुए कुछ खदड़े लोग (हिजड़े) आये जिनका पीछा राजा के सैनिक कर रहे थे। जान बचाने के लिये थे कुम्हार के लाख मना करने पर भी आवे में रखे बड़े मर्तबानों में जा छिपे राजा के लोग कुम्हार के घर की छान-धीन कर चले गये। जलते हुए आये में किसी के छिपे होने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता था। आवा सुलगाने के बाद थके-हारे कुम्हार की आँख लग गई। नींद में ही कुछ समय बाद कुम्हार के कानों में आवाज पड़ी “आवे में रखे तुम्हारे बर्तन सुनहरे हो गये हैं। लेकिन उसने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई। फिर आबाज आई ‘तुम्हारे बर्तन रुपहले हो गये लेकिन कुम्हार ने इसे भी सुना-अनसुना कर दिया। थोड़ी देर बाद वही आवाज फिर बोली “तुम्हारे बर्तन आधे कच्चे, आधे पक्के निकले” यह सुन कुम्हार भागा और उसने पाया कि जिन बर्तनों में वे लोग छिपे हुए थे. वे कच्चे रह गये और इस तरह उनकी जान बच गई। तब से कुम्हार का आवा एक दिन में ही पक जाता है पर कुछ बर्तन सदा कच्चे रह जाते हैं।
कुम्हार चाहता तो अपने लिये सुनहरे या रुपहले बर्तन चुन सकता था. लेकिन उसने नुकसान झेलते हुए भी जीवन बचाने को चुना। कच्छ में आज भी हिजड़े, कुम्हारों को अपना माता-पिता मानते हैं तथा विशेष अवसरों पर उनके पैर छूते हैं। यहाँ भित्ति पर कथा एवं नीचे कच्छ के पारम्परिक मटके, परात तथा तश्तरियाँ आदि प्रदर्शित हैं। परात तथा तश्तरियाँ कुम्हार स्त्रियाँ बिना चाक की मदद के बनाती है तथा सभी बर्तनों पर चित्रकारी करने का काम भी स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है।
THE POTTER’S MYTH
Artists: Smt. Sara Ibrahim and Shri Ibrahim Kasam
Region: Kutchh, Gujarat
In ancient times it took six months for a potter to bake his pots. One day just as the potter had kindled his Niyani, the kiln a group of eunuchs pursued by the soldiers took refuge inside his urns kept in the kiln, inspite of all the efforts of the potter to dissuade them. The king’s men searched all over the house and left. None could conceive of the kiln as a hiding place. After lighting the fire, the tired potter feel asleep. In his dreams, the potter heard a voice proclaiming that his pots had turned golden, this however did not cheer him up. After a while the same voice said, “Your pots have turned silver. The potter did not pay need. For the third time the voice was heard saying that half of his pots have baked and others have remained unbaked. At this, the potter rushed to the kiln and was delighted to find the eunuchs alive inside the unbaked pots. Since then, the pots take only a day to get baked, but some pots are always left half-baked. The potter could have chosen the golden or the silver pots, but he chose to save a few lives at the cost of riches. In Kutchh even today, the eunuchs regard the potter and his wife as their parents, seek their blessings on important occasions and offer money and clothes to them.