सावरा सृष्टि मिथक
कलाकार: श्री भद्राचलम एवं कोरमा राव
क्षेत्र: श्रीकाकुलम, आँध्रप्रदेश
शुरूआत में केवल यह पृथ्वी थी और आकाश में सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी पर केवल गोल-गोल चक्कर लगाती हुई एक चील थी और सूखी हुई लौकी यानी तूम्बे के भीतर एक कीड़ा था। तूम्बे ने सारे वनस्पति जगत को और उसके भीतर के कीड़े ने पहले स्त्री-पुरुष को जन्म दिया। चील ने घोंसला बनाकर बहुत सारे अण्डे दिये। हर अण्डे से अलग पशु-पक्षी जन्मे और सभी का चील ने बराबर ख्याल रखा। स्त्री पुरुष से दो लड़के और दो लड़कियाँ हुई। पिता ने सोचा, परिवार के लिये खाने का इंतजाम करना होगा। उसने औजार बनाये, पहाड़ खोदकर खेत बनाये, हल चलाया और चावल उगाया। बीयमू (चावल) पकाकर दो कटोरों में भर पिता ने बेटों को आवाज़ दी। बड़े बेटे ने कोई ध्यान नहीं दिया जबकि छोटा बेटा भागा-भागा आया। इस तरह छोटे को सारे औजार मिल गये और बड़े को केवल कुदाली मिली। इसके बाद पिता ने उन्हें भोजन करने को कहा – भात का एक कटोरा बड़ी-सी चट्टान पर रखा था और दूसरा नीचे मिट्टी पर रखा था। बड़ा बेटा फौरन चट्टान पर जा बैठा और छोटे ने जमीन वाला कटोरा उठाया। पिता ने बेटे से कहा कि तुम बड़ी बेटी के साथ पहाड़ पर रहोगे और सावरा कहलाओगे। वह छोटे बेटे से बोला कि तुम छोटी बेटी के साथ जाओ और तुम्हारे बच्चे किसान, कुम्हार, लुहार, बढ़ई आदि बनेंगे क्योंकि सारे औजार और मिट्टी तुम्हारे पास हैं। इसीलिये सावरा लोग पोडु-व्यवसायम यानी पहाड़ को काट-काट कर खेती करते हैं। हर सावरा गाँव में एक सुदिराई (चौकोर चट्टान) अवश्य होती है, जिसे वे पवित्र मानते हैं और बीमारी का उपचार भी ओझा इसी सुदिराई पर बैठकर करता है।
सावरा लोग वसंत में येतनाल पोता नामक त्यौहार मनाते हैं, जिसमें घर की दीवार पर प्रायः सफेद रंग से चित्र बनाया जाता है, जो अब सावरा चित्रशैली के रूप में प्रसिद्ध हैं। चित्र में पूरी कथा के साथ-साथ पेड़ के नीचे आयुध पूजा का स्थान भी बना है।
THE SAORA ORIGIN MYTH
Artists: Shri Bhadrachalam and Korma Rao
Region: Srikakulam, Andhra Pradesh.
In the beginning there was just the earth below and the sun and the moon above. In the sky there was the flying eagle and on the earth an insect inside a dried gourd. This insect gave birth to the first man and woman. From the gourd originated all the flora and from the eagle, the entire fauna. The man and the woman further gave birth to two daughters and two sons. The father made some tools, tilled the land and grew some rice. When the rice was cooked, he served it in two bowls and called for his sons. The elder did not respond but the younger came running. The younger thus got all the tools while the elder had to contend himself with the hoe. The father then asked them to eat. The elder picked up the bowl kept on the rock while the younger chose the one kept on the earth. It was thus decided that the elder goes with the elder girl to the mountains, settles there and calls his clan Saora. The younger however would accompany the younger girl and train his progeny for the various skilled jobs of farming, pottery, black smithy, carpentry etc since he had all the tools and the soil in the bargain. All the rest of the castes of the world were thus to descend from the latter’s family.
Ever since then Saoras cut the mountains and till the land. Every Saora village has a square rock, the Sudirai that they hold sacred. The Saoras also celebrate a festival in springtime called Yetnal Pota, when they make painting on the wall of their house. This is what has now come to be known as the Saora Painting. The painting depicts the entire story, in which among other things is also that rock under the tree where they worship their tools.