देव स्थान
कलाकार: श्री दिनेश कुम्हार एवं श्री रक्बा कुम्हार
क्षेत्र: मोलेला, राजस्थान
समूचे राजस्थान में शक्ति तथा भैरव के अतिरिक्त अनेक पुरखों या ऐतिहासिक व्यक्तियों को भी देव रूप में पूजे जाने की परम्परा है। उदयपुर के निकट मोलेला नामक गाँव विशेष रूप से मिट्टी की देव मूर्तियों के लिये प्रसिद्ध है। मिट्टी की आयताकार चपाती (थाळा) के ऊपरी भाग को मंदिर (साजा) का आकार दिया जाता है, जिसे फिर कॅगूरे कमल, डडूलिया और बटी से सजाया जाता है। तब इसे पर बहुत उमरी हुई व भीतर से पीली मिट्टी की देव आकृतियाँ बनाई जाती है। मूर्तियों पर रंग, आवे में पकाये जाने के बाद किया जाता है। यहाँ निम्नलिखित मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं:
साडुमाता – देवता के रूप में पूजे जाने वाले देवनारायण की माँ हैं तथा इनकी मूर्ति देवनारायण को गोद में लिये हुए है।
गुना-मेंदू – देवनारायण के भाई हैं। इनके बीच में नाग बना है।
माछला माता – गोत्र संबंधी देवी, जो मछली पर आसीन हैं।
हँस माता- गोत्र संबंधी देवी, जो हंस पर आसीन हैं।
नरसिंघी माता – गोत्र संबंधी देवी, जो सिंह पर आसीन है।
आशापुरा / चामुण्डा- गोत्र संबंधी देवी, जो हाथी पर आसीन हैं।
कालिका – गोत्र संबंधी देवी, जो गाय पर आसीन हैं।
लाला-फूला- ऊँट पर सवार रबारी देवता, जो खेतों की रखवाली करते हैं, इसलिये इनके मंदिर भी खेत में ही होते हैं।
एठवाड़ी माता / पँचमाता- इन्हें हरिजन पूजते हैं तथा इन्हें प्रसाद में जूठा भोजन चढ़ता है।
पाबूजी वीर पुरुष जिनकी लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठा है। घोड़े पर सवार इनकी मूर्ति में धनुष-बाण उठाये सात भील भी बनाये जाते हैं।
देवनारायण या ताखाजी- वीर पुरुष जिनकी लोक देवता के रूप में प्रतिष्ठा है। इनकी घोड़े पर सवार मूर्ति के साथ गायें. अजगर भाट, वाला भी चित्रित किये जाते हैं। कभी-कभी इन्हें सिर्फ नाग के रूप में बनाया जाता है।
पंखी घोडा – यह चित्तौड का मिथकीय पंखों वाला घोडा है।
काला गोरा – ये भैरव के दो रूप हैं तथा हाथ में नरमुण्ड लिये रहते हैं। रंग लगाते समय इनके साथ कुत्ता भी चित्रित किया जाता है।
भैरव – मुण्डमाला पहने तथा हाथ में भी नरमुण्ड लिये शिव का रूप माने जाता हैं।
DEV STHAN
Artists: Shri Dinesh Kumhar and Rakha Kumhar
Region: Molela, Rajasthan
Across Rajasthan apart from Shakti and Bhairav, there is a tradition of worshipping the ancestors and historical figures. Molela, near Udaipur is particularly known for such clay figures. All the figures are made in a two demensional clay-relief over rolled rectangular plates. After they come out of the kiln they are painted over in bright colours. Here one can see the following figures:
Sadumata: The mother of an immensely popular local deity Devnarayan, who stands holding the child Devnarayan in her arms.
Guna Mendu: The brothers of Devnarayan with a snake in the middle.
Machhlamata: Clan goddess sitting on a fish
Hansmata: Clan goddess sitting on a swan
Narsinghimata: Clan goddess sitting on a lion
Chamundamata: Clan goddess sitting on an elephant
Kalikamata: Clan goddess sitting on a cow
Ratnaraika: The Rabari deity who looks after the fields, rides the camel and his temples are usually made in the fields too.
Aithwarimata: Worshipped by Harijans and to whom leftover food is offered
Pabuji: A great warrior who is worshipped as a local deity Seven Bhils, his friends are always made with Pabuji’s figure on the horse.
Devnarayan/ Takhaji: A great warrior, worshipped as a deity Along with his figure on the horse are often made, cows, snake, bard and shepherd. Sometimes he is depicted by just a snake
Pankhighora: The mythical winged horse of Chittor
Kala Gora: These are two forms of Bhairav with severed heads in hand. When the plate is painted, a dog is also drawn by the side.
Bhairav Revered as a form of Shiva, he is made wearing a necklace of heads with one in his hands too.