‘‘मेढ़हठ कुठ्ठी‘‘
(लोहा निकालने की पारम्परिक भट्टी)
समुदाय : बिरजिया जनजाति
क्षेत्र: हाणुप पाठ, विषुनपुर
जिला: गुमला
राज्य: झारखण्ड
‘‘मेढ़हठ कुठ्ठी‘‘ ग्राम हाणुप पाठ, जिला गुमला की बिरजिया जनजाति के द्वारा लौह अयस्क से लोहा प्राप्त करने में प्रयोग की जाने वाली एक पारम्परिक भट्टी है। बिरजिया झारखण्ड राज्य की असुर जनजाति का एक उप समूह है। वर्तमान में बिरजिया समुदाय को एक पृथक जनजाति का दर्जा प्राप्त है। बिरजिया पारम्परिक तकनीक के माध्यम से लोहा पिघलाने का कार्य करते है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य समुदाय भी जैसे- झारखण्ड के असुर, वीर असुर, सिंदुरिया असुर, व मध्य प्रदेश की अगरिया जनजाति इसी तकनीक से लोहा प्राप्त करते है।
संग्रहालय में स्थापित यह बेलनाकार भट्टी पीली मिट्टी और भूसे से निर्मित है तथा इसकी ऊचाई 85 से.मी. व अधिकतम गोलाई 220 से.मी. है। भट्टी के निचले हिस्से में एक छिद्र होता है जिसमें गीली राख के सहारे वायु प्रवाह करने वाली मिट्टी की कीप स्थापित होती है। मिट्टी निर्मित कीप प्रगलन प्रक्रिया के दौरान पंखा या पारम्परिक धोकनी से आने वाली हवा को भट्टी में पहुँचाती है।
स्थानीय पहाड़ों से एकत्र किये गये लौह अयस्क को हथौड़ी की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर, पिघलाने के लिए साल (सोरिया रोबस्टा) की लकड़ी के कोयला के साथ मिलाकर भट्टी में डाला जाता है। भट्टी में आग जलाकर पंखा या धोकनी से हवा देने पर कोयला जलकर लगभग 1600°C तापमान उत्पन्न करता है। भट्टी के निचले हिस्से में अयस्क से लोहा पिघलकर एक गड्ढे में एकत्र हो जाता है। इस तरह से प्राप्त गर्म लोहे को पास स्थित एक अन्य भट्टी की आग में पुनः गर्म कर निहायी व हथौड़े की मदद से पीटकर विभिन्न प्रकार के घरेलू व कृषि औजार तैयार किये जाते हैं।
“Medhhath Kuththi”
(A traditional iron extracting furnace)
Ethnic group: Birjiya Tribe
Area: Hanup Path, Vishunpur
District: Gumla
State: Jharkhand
“Medhhath Kuththi” traditional furnace for obtaining iron from ore is one of the objects amongst these which was collected from the Birjiya tribe of the Hanup path village, District Gumla. Birjiya is a sub tribe of Asur tribe of Jharkhand. Now a days Birjiya also has got the status of a separate tribe. Birjiyas use to melt the iron through traditional technology. In addition, couple of other communities like Asur, Veer Asur, Sinduria Asur, of Jharkhand and the Agaria tribe of Madhya Pradesh also obtain iron by applying the same technique.
This clay and husk made cylindrical furnace is 85 cm in height and maximum 220 cm in cylindrical shape. The hollow furnace has a hole like opening at it’s base in which a clay funnel is inserted with help of wet ash. During the process of smelting this clay funnel supply the air into the furnace coming from fan or a traditional bellow.
The ore collected from local hills is hammered in small pieces and put in the furnace along with charcoal of Sal (Shorea Robusta) wood. The Sal wood charcoal generates nearly 1600° C temperature in the furnace. The melted iron gathers in a hole in the base of furnace. Hence obtained iron is again put on heat in to another furnace nearby and beaten with the help of a hammer to make domestic and agricultural tools.