कुँवर देव की कथा व अनुष्ठान
कलाकार: श्री सहदेव राणा एवं श्री ईश्वर राणा
क्षेत्र: बस्तर, छत्तीसगढ़
किसान के बेटे कुँवर देव को जानवरों से अथाह प्रेम था। एक बार जब वे अपने उड़ने वाले घोडे पर सवार होकर कहीं जा रहे थे तब सोकई धनी नाम की ईर्ष्यालु टोनही ने जादुई बाण से उन्हें मार गिराया। मरते हुए भी उन्होंने बस्तर के लोगों को उनके मवेशियों की सदैव रक्षा का वचन दिया। आज तक मवेशियों को होने वाली खुरा-खप्चा बीमारी का उपचार कुँवर देव के स्थान पर मवेशियों के दाँवा (रस्सियाँ) चढ़ाकर ही किया जाता है।
कुँवर देव का स्थान बस्तर के हर गाँव में सड़क के किनारे होता है। गाँव के सब लोग, कुँवर देव के स्थान पर जाकर मवेशियों की बीमारी रोकने की प्रार्थना करते हैं। तीन दिन के भीतर बीमारी थम जाती है। लोग जानवरों के दाँवा और धान की बाली कुँवर देव के खम्भ पर चढ़ाते है। सिरहा (पुजारी) एक डोली बनाता है और उसमें अंगार, धान के फूल और दाँवा रखकर गाँव की सीमा के बाहर छोड़ आता है। दूसरे गाँव के लोग फिर अपने जानवरों के दाँवा और धान के फूल मिलाकर डोली को अगले गाँव की सीमा पर छोड़ते हैं। इस तरह से यह डोली कई बार बस्तर के एक छोर यानी अबूझमाड़ से दूसरे छोर-कोकेर तक जाती है। कॉकेर से पहाड़ पर स्थित तेलिन शक्ति की पूजा के बाद सारे दाँवा पहाड़ी के दूसरी ओर फेंक दिये जाते हैं। इस तरह खुरा-खप्चा बीमारी को बस्तर से खदेड़ा जाता है।
इस म्यूरल में कथा के साथ-साथ उपरोक्त अनुष्ठान भी दर्शाया गया है।
THE MYTH AND THE RITUAL OF KUNWARDEV
Artists: Shri Sahdev Rana and Shri Tulsi Ram
Region: Bastar, Chhattisgarh
Kunwardev had a great love for cattle. Once when he was on his way to his friend’s on his flying horse, the jealous enchantress shot him down with her magical arrow. The dying Kunwardev remembered his cattle and vowed to protect them even after his death.
Even today, the people of Bastar offer danva, or ‘the rope of the cattle’ at his shrine, seeking a cure for the diseased cattle feet.
Kunwardev’s shrine can be seen on the roadside in all the villages in Bastar. The village folk come to him. whenever the cattle is struck by a disease. Within three days of the ritual worship the disease is ousted from the village. The priest or Sirha makes a palanquin, places. ambers, paddy sheaves and the ropes of the cattle in it and carries it to the village boundary. From here the next village picks it up, adds its paddy sheaves and cattle ropes and takes it across to the next village and so forth. Thus the palanquin at times travels from one end of Bastar (Abujhmar) to the other (Kanker). In the end. after worshipping the deity Telin Shakti, all the ropes are thrown on the other side of the hill. In this way the epidemic is driven out of Bastar.
The mural here depicts the myth as well as the ritual related to the worship of Kunwardev.