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चरू त्यौहार और माटी त्यौहार / Charu and Maati festival

माटी त्यौहार
कलाकार:- श्री सहदेव राणा
क्षेत्र:- बस्तर, छत्तीसगढ़

बस्तर संभाग के अलग-अलग क्षेत्रों में माटी त्यौहार विधि पूर्वक मनाया जाता है। यह त्यौहार चैत्र माह में तीन दिनों तक मनाया जाता है। प्रत्येक गाँव में एक माटी कोट होता है, जहाँ माटी देव की पूजा की जाती है। माटी पूजा के पहले दिन गाम देवी के समक्ष अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा कर जंगल में शिकार किया जाता है। शिकार को कंधे पर उठाकर गाजा-बाजा बजाते हुये उसे माटी कोटा तक लाया जाता है, फिर रात को नाच-गाना कर वहीं विश्राम करते हैं। दूसरे दिन गाँव में किसी भी प्रकार का माटी से संबंधित कार्य, गाँव में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश, जंगल से पत्ता, लकड़ी या फ़िर अन्य किसी प्रकार का कार्य प्रतिबंधित रहता है। तीसरे दिन माटी मान के लिये अपने-अपने घरों से क्षमतानुसार चढ़ावा जैसे – बकरा, मुर्गा,, सुअर, फ़ल, चावल, सब्जी आदि लेकर आते हैं। गायता (माटी पूजारी) द्वारा धरती माता को संतुष्ट करने के लिये ग्रामवासियों द्वारा लाये गये पशुओं की बारी-बारी से बलि दी जाती है। सबकी बलि पूजा के बाद पशुओं का सिर भाग गायता का होता है और धड़ भाग मानता (मन्नत) करने वाले का होता है। उसी स्थान पर भोजन बनाया जाता है एवं उस दिन गाँव के समस्त पुरूष उसी स्थान पर भोजन करते हैं। ग्रामवासी उस दिन जितना जल्दी हो घर लौट आते हैं क्योंकि आदिवासियों की मान्यता है कि शाम होते ही उस स्थान पर शेर आता है एवं वही धरती माता का साक्षात रूप होता है।

Maati Tiohar
Artist: Shri Sahdev Rana
Region: Bastar, Chattisgarh

In different region of Bastar, the soil festival is celebrated in a precise manner. It is celebrated for three days in the month of chaitra (March- April). Each village has a place called maati kot, where deity of soil is worshipped. On the first day of Maati Puja villagers make ceremonial worship of weapons, seeks blessings from village deity and go for hunting expedition. The prey is carried over the shoulder in a procession and brought to maati kot. They sing, play and dance the entire night and rest there. On the second day any kind of soil related work is prohibited in the village as well as collection of leaf, wood and other work in the forest and entry of outsiders in the village is barred. On the third day, villagers bring goat, chicken, pig, fruits, rice, vegetables etc. from their respective homes for offerings. To appease the mother earth, Gayeta (maati priest) sacrifices the animal brought by the villagers. The head part of the animal belongs to the Gayeta and the torso part belongs to the one who took the vow. Community feast is arranged at the same place and all the male member of the village eat there. After the feast the villagers come home as early as possible because they have a belief that as soon as the evening falls, a lion comes to that place who is considered to be the real form of Mother Earth.

चरू त्यौहार
कलाकार:- श्री सहदेव राणा
क्षेत्र:- बस्तर, छत्तीसगढ़

बस्तर अंचल में फ़सल कटाई के बाद प्रत्येक आदिवासी अपने-अपने खेतों में चरू त्यौहार मनाते हैं। यह त्यौहार अच्छी फ़सल के लिये धरती माता को कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिये मनाया जाता है। गायता (पुजारी) के नेतृत्व में प्रमुख व्यक्तियों से विचार-विमर्श के पश्चात एक शुभ दिन, खासकर मंगलवार, को निश्चित कर चरू त्यौहार का आयोजन किया जाता है। तय की गई तिथि को माटी पुजारी पूजा-सामग्री लेकर निर्धारित स्थान पर पहुँचता है। सभी ग्रामवासी अपने-अपने खेत में अर्पण करने के लिये अपनी क्षमतानुसार सामग्री जैसे बकरा, मुर्गा, फ़ल-फ़ूल, भोजन के लिये चावल, दाल, सब्जी आदि लेकर आते हैं। खेत में एक निर्धारित स्थान को पुजारी गोबर से लीपकर उसके ऊपर चावल के आटे से चौक पूरता है। जिसे बाधा लेप कहते हैं। बाधा लेप के बीचों-बीच भीगे चावल रखकर उसमें हल्दी लगाकर, वह अक्षत देता है। थोड़ी दूरी पर चावल के ऊपर दीया एवं अन्य चढ़ावे देकर राव देव एवं अन्य देवों की प्रार्थना करता है। ग्रामवासियों द्वारा लाये गये पशुओं की बारी-बारी से बलि दी जाती है और वहीं अलग-अलग समूह में भोजन बनाकर खाया जाता है। चरू त्यौहार में महिलाओं का जाना वर्जित माना जाता है। इस टेराकोटा भित्ति में चरू के अनुष्ठान को दर्शाया गया है।

Charu Tiohar
Artist: Shri Sahdev Rana
Region: Bastar, Chattisgarh

In the Bastar region, tribal celebrate charu festival in the field after harvesting the crop. It is celebrated to express gratitude to mother earth for a good harvest. After discussion with the prominent people, under the leadership of Gayeta (priest) an auspicious day is decided especifically tuesday to celebrate the charu festival. On the appointed day Gayeta reaches the place with items used for worship. Villagers bring goat, chicken, fruits, flowers, rice, pulses, vegetables etc. according to their sufficiency to offer in their respective field. The priest apply cow dung to a particular place in the field and draw the ritual chawk with rice paste called badha lep. Also put soaked rice in the middle of the chawk, apply turmeric to it. At a little distance he put lamp over the rice and offerings and invoke Rav dev and other deities.  The animals brought by the villagers are sacrificed one by one and community feast is prepared in different groups. Women are considered barred in the Charu festival. The terracotta mural depicts the ritual of charu.