मेंढका बिहाव का अनुष्ठान
कलाकार श्री सहदेव राणा एवं श्री तुलसी राम
क्षेत्र: बस्तर, छत्तीसगढ़
यदि सावन का महीना पूरा सूखा चला जाय तो गाँव के लोग मिलकर जिमिदारिन माता से मेंढकों का व्याह करने की अनुमति माँगते हैं। सारा गाँव इस व्याह के लिये चंदा करता है। चावल-दाल, तेल-हल्दी, सूत-सिंदूर, बाँस की टोकरी, पंखा, चूड़ा-गुड़ इकट्ठा किया जाता है। मरार और पनारा जाति के लोगों को ब्याह के लिये जरुरी खजूर के पत्रों का मुकुट बनाने का काम दिया जाता है। निश्चित दिन गाँयता (पुजारी) किसी नाले से मेंढक मेंढकी को पकड़ कर लाता है। लड़के-लड़कियाँ गाजे-बाजे के साथ महुए की डाल काट कर लाते हैं, उसे मण्डप में गाड़ते हैं। तथा उस पर सात फेरे सूत के बाँधते हैं। दूल्हा-दुल्हिन को मुकुट पहनाकर, कपड़ा उढ़ाकर हल्दी-तेल चढ़ाया जाता है। व्याहता स्त्री सिर पर कलश उठाये मण्डप में सात फेरे लेती है और तब कपड़े में गाँठ बाँधकर व्याह सम्पन्न होता है। सारा गाँव भोजन करता है और तब विदाई की रस्म यानी मेंढकों को पुनः उनकी पुरानी जगह पहुँचा देने का काम होता है।
मान्यता है कि व्याह से उल्लसित मेंढक टर्रायेंगे और उनकी इस टेर पर बादल निश्चित ही आयेंगे।
THE RITUAL OF MENDHKA BIHAV
Artists: Shri Sahdev Rana
Region: Bastar, Chhattisgarh
Whenever the first half of the monsoon go dry the villagers meet at goddess Jimidarin mata’s shrine to take her permission to conduct the ritual frog marriage. The whole village contributes in cash and kind towards it. A person from Marar or Panara caste is given the job of making the marriage crown from palm leaf. On the appointed day the Gayeta or the priest brings two frogs from the nearby stream, young girls and boys fetch a branch of the Mahua tree and fix it in the marriage pavillion. The crowned frog couple are then placed under the branch and annointed with turmeric and oil. A married woman carrying the pitcher takes seven rounds of the couple before the knot is tied. The whole village then feasts and makes merry. Thereafter the frog couple is taken back to their original abode. It is believed that the happy couple will croak and this will lure the clouds to their parched fields.