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नालुकेट्टू और अराप्पुरा -Naalukettu and Arappura

केरल के नालुकेट्टू और अराप्पुरा आवास प्रकार

 संग्रहालय की तटीय गांव मुक्ताकाश प्रदर्शनी परिसर में केरल के दो विशिष्ट पारंपरिक आवास-प्रकार हैं। इन्हें दो अलग-अलग गांवों से संकलित किया गया था। पथनमथिट्टा जिले के मन्नाडी गांव से पहला आवास वर्ष 1990 में अधिग्रहित किया गया था जो वास्तुकला के पारंपरिक नालुकेट्टू पैटर्न पर बना है तथा जिसमें 18 वीं शताब्दी से दस से अधिक पीढ़ियों के संयुक्त परिवार के सदस्य रहते आये थे। इसके साथ ही एक अन्य घर अराप्पुरा को कोट्टायम जिले के पाला गांव से 20 वीं शताब्दी के एकल परिवार के वास्तुशिल्प पैटर्न को दर्शाने के लिए अधिग्रहित किया गया था। दोनों घर केरल के भव्य क्षेत्रीय वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करते हैं। इन दोनों घरों में ‘आचारियों’ (पारंपरिक बढ़ई) का उच्च गुणवत्ता वाला शिल्प कौशल दिखाई देता है। केरल में बेहतर गुणवत्ता वाले पत्थर, लेटराइट और लकड़ी प्रचुर मात्रा में हैं और ये नालुकेट्टू और अराप्पुरा निर्माण की मुख्य सामग्री हैं।

सामान्यतः नालुकेट्टू पैटर्न का निर्माण नंबुदरी ब्राह्मणों और नायर योद्धा जातियों के आवासों के लिए 15वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान किया गया था। परंपरागत रूप से ब्राह्मणों के नालुकेट्टू को ‘इलोम्स’ या ‘मानस’ के रूप में जाना जाता था, जबकि नायर संयुक्त परिवारों के आवास को ‘तरावाड़’ के रूप में जाना जाता था। एक मां का पूरा वंश अर्थात उसके सभी बच्चे, उसकी बेटियों द्वारा उत्पन्न उसके सभी पोते, उसके सभी भाई और बहन और बहन के पक्ष के वंशज, नायर तरावाड़ के नालुकेट्टू में एक साथ रहते थे।

            नालुकेट्टू का एक महत्वपूर्ण पहलू खुला केंद्रीय प्रांगण है जिसे ‘नादुमुत्तम’ कहा जाता है, जो मुख्य घर के चार सलस (भागों) से घिरा होता है। इनमें से प्रत्येक सलस में एक विशेष दिशा की ओर उन्मुख आयताकार हॉल और एक बरामदा होता है। पूर्व मुखी भाग को ‘किझक्किनी’ तथा पश्चिम भाग को ‘पदिनजत्तिनी’, दक्षिणमुखी भाग को ‘थेक्किनी’ तथा उत्तरमुखी भाग को ‘वडक्किनी’ कहा जाता है।

            एक नालुकेट्टू के भीतर सदस्यों की आवाजाही पर पारंपरिक वास्तु-शास्त्र (मानुष्यालय चंद्रिका) में बताये अनुसार कुछ सीमाएँ और प्रतिबंध थे। ‘किझक्किनी’ में इल्लम/तरावाड़ में आने वाले विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया जाता था। ‘पदिनजत्तिनी’ का उपयोग अनाज और अन्य मूल्यवान घरेलू सामग्री के भंडारण के लिए किया जाता था। ‘वडक्किनी’ आमतौर पर महिलाओं के लिए होती थी। ‘थेक्किनी’ को अत्यधिक पवित्र माना जाता था और महिलाओं को इस हिस्से में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। एक तरावाड़ का वरिष्ठ पुरुष सदस्य जिसे ‘कर्णवर’ के रूप में नामित किया जाता था,  इस हिस्से में रहता था। प्रत्येक तरावाड़ के आर्थिक और राजनीतिक मामलों का प्रशासन ‘कर्णवार’ द्वारा किया जाता था। यह अपने पूर्ण विवेक का प्रयोग करते हुए परिवार की आय को उसके सभी सदस्यों के लाभ के लिए उपयोग करता था। विभाजन की स्थिति में ‘कर्णवार’ की संपत्ति उसके बच्चों को नहीं, बल्कि उसकी बहनों के बच्चों के पास जाती थी। संपत्ति हस्तांतरण के इस विशिष्ट नियम को ‘मरुमक्कथायम’ कहा जाता था।

संपत्ति के हस्तांतरण का ‘मरुमक्कथायम’ नियम नायरों और नंबुदरी-ब्राह्मणों के बीच एक विशिष्ट वैवाहिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ था। नंबुदरियों में केवल सबसे बड़े बेटे को वैदिक रीति-रिवाजों के साथ, अपनी जाति में विवाह करने और अपने परिवार के लिए बच्चे पैदा करने की अनुमति थी, जबकि बाकी पुरुष सदस्य अनुष्ठानिक रूप से अविवाहित रहते थे। नंबुदरियों के अन्य पुत्र जो अपनी जाति में विवाह नहीं कर सकते थे, उन्होंने नायर महिलाओं के साथ संबंध स्थापित किए। इस प्रथा को ‘संबंधम’ के नाम से जाना जाता था।

पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव ने 19वीं शताब्दी से केरल में सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। बड़े पुत्र के अतिरिक्त अन्य पुत्रों को अपने ही समुदाय में शादी करने की अनुमति नहीं देने की प्रथा ने नंबूदरियों में पारिवारिक अशांति को जन्म दिया। शिक्षित नायरों ने भी ‘संबंधम’ और ‘मरुमक्कथायम’ जैसी बुराइयों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने संयुक्त परिवार प्रथा के कई बुरे प्रभावों को उजागर करने के लिए समितियों का गठन किया। 20वीं शताब्दी में हुए सुधारवादी सामाजिक आंदोलनों ने ‘संबंधम’ और ‘मरुमक्कथायम’ को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।

राकेश भट्ट, जी.जयप्रकाशन, ट्रेडिशनल ड्वेलिंग्स ऑफ इंडिया, केरल के नालुकेट्टू, आईजीआरएमएस न्यूज, वॉल्यूम-3, नंबर 1, जनवरी, 2006.

Naalukettu and Arappura house types of Kerala

In the Coastal Village open air exhibition complex the IGRMS have, two typical traditional house-types from Kerala. These were transplanted from two different villages. The first one built on the traditional Naalukettu pattern of architecture, in Mannady village of Pathanamthitta district, and lived in by the members of a joint family of more than ten generations since 18th century, was acquired in the year 1990 for posterity. Another house, an Arappura from Pala village of Kottayam district was also acquired simultaneously to present the 20th century architectural pattern of nuclear family set-up.  These two houses present the splendors of regional architectural designing in Kerala. High quality craftsmanship of ‘Acharies’ (traditional Carpenters) are visible in both these houses. Superior quality stone, laterite and timber are abundant in Kerala and these formed the main materials for Naalukettu and Arappura constructions.

Naalukettu pattern of structures were generally constructed in the 15-18th centuries for the housings of Nambutiri Brahmins, and the warrior castes of Nayars (Nairs). Traditionally, the Naalukettu of the Brahmins were known as ‘Illoms’ or ‘Manas’, while that of the Nayar joint families were known as ‘Tarawads’. A whole lineage derived from a particular mother, i.e. all her children, all her grand children by her daughters, all her brothers and sisters and descendants on the sister side, lived together in the same blocks of Naalukettu of Nayar Tarawads.

            A significant aspect of the Naalukettu is the open central courtyard called ‘Nadumuttam’, enclosed by four salas (portions) of the main house. Each of these salas consists of a rectangular hall and a Verandah, facing the four cardinal directions. The east facing portion is called, ‘Kizhakkini’, and west portion is known as ‘Padinjattini’, the south facing portion is ‘Thekkini’ and north facing portion ‘Vadakkini’.

            There existed certain limitations and restrictions, as narrated in the traditional Vaastu-Sastra (Manushyalaya Chandraika) on the movement of household members within a Naalukettu. The ‘Kizhakkini’ was meant for entertaining the distinguished guests who visit the Illam/Tarawad ‘Padinjattini’ was used for storing grains and other valuable house-hold materials. ‘Vadakkini’ were generally meant for women folks. The ‘Thekkini’ was considered highly sacred, and the women folks were not allowed to enter this portion. The senior male member of a Tarawad, designated as ‘Karnavar’, reigned over this portion. The economic and political affairs of each Tarawad were administered by the ‘Karnavar’. The venerable ‘Karnavar’, who in exercise of his absolute discretion administrated the income of the family for the benefit of all its members. In the event of partition, the properties of the ‘Karnavar’ were to go not to his children, but to the children of his sisters. This distinct rule of inheritance was called ‘Marumakkathayam’.

Marumakkathayam rule of inheritance came to be associated with a peculiar matrimonial system between the Nayars and the Nambutiri-Brahmins. Among Nambutiris, only the eldest son was allowed to marry, with Vedic rites, from his own caste and beget children for his family, while rest of the male members remained ritually unmarried. The younger sons of Nambutiris who could not marry within their caste, had established relations with Nayar women. This custom was known as ‘Sambandham’.

The influence of western education made radical changes in the social set up in Kerala since 19th century. The Nambutiri practice of not allowing younger sons to marry from their own community triggered familial unrest within the Nambutiris. The educated Nayars too revolted against the evils of ‘Sambandham’ and ‘Marumakkathayam’. They formed associations to highlight the evil effects of many joint family customs. The reformative social movements that followed in the 20th century buried the ‘Sambandham’ and ‘Marumakkathayam’ forever.

Rakesh Bhatt, G. Jayprakshan, Traditional Dwellings of India, Naalukettu of Kerala, IGRMS News Vol-3, No. 1, January, 2006.