जैतिर देव की कथा
कलाकार: श्री मंगेश वाळवलकर, श्री दीपक तुम्बरे
क्षेत्र: सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र
जैतिर बहुत छोटे थे, तभी उनकी बहन का विवाह किसी सुदूर गाँव के श्रीमंत से हो गया था। जल्दी ही उनके माता-पिता का भी देहांत हो गया। अनाथ जैतिर अपने एकमात्र चरवाहे बंधु के साथ बहन की खोज में निकल पड़े। नारुळ गाँव में प्यास से व्याकुल जैतिर को जिस स्त्री ने पानी पिलाया, वह उन्हें अपनी बहन सी लगी। सच का पता लगाने की गरज से दोनों मित्र रात रुकने का आसरा माँगते हुए। वहीं ठहर गये तथा स्त्री को साथ लाये हुए चावल पकाने को कहा। चावल खाते ही स्त्री रो पड़ी और बोली “इस भात में से मेरे गाँव के तालाब के पानी की गन्ध आती है। भाई ने अपनी बहन को पहचान लिया और कुछ दिनों के लिए घर चलने का अनुरोध किया। लेकिन बहन के पति को यह बात बिलकुल नहीं ऊँची और उसका गुस्सा इतना बढ़ा कि उसने जैतिर का सिर काट दिया। हतप्रभ चरवाहा मित्र के सिर को ले कर अपने गाँव तुळस की ओर भागा। रास्ते में जहाँ उसका कम्बल गिरा वह स्थान काम्बळे वीर तथा जहाँ डंडा गिरा वह स्थान डांड्या चे गाड़वो कहलाते हैं। अपने गाँव तुळस पहुँचकर चरवाहे ने भी प्राण त्याग दिये। इसी स्थान पर जैतिर का मंदिर तथा चरवाहे की समाधि है। हर वर्ष वैशाख माह की अमावस्या को यहाँ मेला भरता है तथा पुजारी लकड़ी का बड़ा-सा जैतिर का मुखौटा पहनकर नृत्य करता. लोगों के दुख दूर करता है।
चित्रकथी शैली में चित्रित यह कथा पूर्वजों के कालांतर में देव रूप में पूजे जाने का उदाहरण है।
THE MYTH OF JETEER
Artist: Shri Mangesh Walvalkar and Shri Deepak Tumbre
Region: Sindhudurg, Maharashtra
This myth painted in the Chitrakathi style here tells of the eventual worshipping of the ancestors as Gods. When Jeteer was still very small, his sister was married and sent off to a distant village. Soon after, his parents left this world, and he was brought up by a kind shepherd. Though the shepherd did not live long, by the time Jeteer was grown up enough to take the shepherd’s son and set out in search of his sister. In a village called Narul, they stopped at a house for the night. They asked the woman of the house to cook for dinner the rice they were carrying. When the woman sat down to eat, tears started rolling down her eyes and she said to herself, “This rice smells of the lake water in my village. The brother recognized her long lost sister and pleaded her to accompany him home for a few days. The brother-in law however got furious with the stranger’s behaviour, and cut his head off. The shocked shepherd ran towards his village Tudas with the severed head in his hands. On his way the places where his blanket and stick fell came to be called Kamble Veer and Dandya Che Gadwo respectively. Somehow he held his breath till his village, but on reaching there fell down dead.
This is the place where a temple in memory of Jeteer is built and a few steps before it stands his shepherd friend’s samadhi, or the grave. Later there was also a temple constructed at Narul. At both these places, there is a fair on the new moon of Baisakh (April-May) when the temple priest dances wearing Jeteer’s mask and rids people of their misery