पटुआ चित्रकारों द्वारा गायी जाने वाली सृष्टि कथा
कलाकार: श्रीमती मणिमाला चित्रकार
क्षेत्र: मिदनापुर, पश्चिम बंगाल
आदि-देवता-मारौंग बुरूंग ने जल के निवासी केकड़ा, कच्छप, मीन एवं सौंप को बुलाकर पाताल से धरती को पानी के ऊपर लाने को कहा। इसके बाद उन्होंने सबसे पहले दो गायें, आईनगाय, बाईनगाय बनाई, जिनकी लार से दो पक्षी बने और इनके अण्डों से प्रथम स्त्री-पुरुष, पिलचु बुढी-पिलचु हड़ाम जन्में। इनके सात बेटे-बेटियों हुई । इन्हें आपस में एक दूसरे से ब्याह करने से रोकने की पिलचु हड़ाम और पिलचू बुढी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वे उन्हें ज्यादा दिनों तक रोकने में असफल रहे। क्षुब्ध होकर पिलचु हड़ाम-पिलचु बुढ़ी ने देह का त्याग कर दिया। इन सात भाईयों से ही संथालों के विभिन्न गोत्र बने। सबसे बड़े भाई ने जादब गुरु (पुरोहित) के रूप में पत्ते पर माता-पिता का चित्र बनाकर चक्षु दान किया और यहीं से पटुआ चित्रकला की शुरुआत हुई। आज भी संथालों में किसी की मृत्यु होने पर जादब पटुआ को बुलवाकर यह आदिकथा चित्रित करवाने तथा अंत में मृतक के नाम से चक्षुदान (चित्र में विधि पूर्वक आँख का बिन्दु चित्रित करना) करने की प्रथा है। मान्यता है कि चक्षुदान न करने पर मृतक की आत्मा दृष्टिहीन हो कर भटकेगी। यहाँ लम्बे पत्थर पर पटुआ चित्रकला की उत्पत्ति की दोनों कथाएँ आगे-पीछे चित्रित की गई हैं।
THE FIRST PATUA PAINTER
Artists: Smt. Manimala Chitrakar
Region: Midnapur, West Bengal
Marang-Burung, the primordial god, summoned the crab, the tortoise and the snake from the netherworld and asked them to restore the earth on the surface of the water. After he had put them on the job, he created first and foremost, two cows called Ain gaye and Bain gaye. The cows further created two birds from their saliva. The birds laid eggs and out came the first man and woman, Pilchu Haram and Pilchu Burhi. The couple then went on to give birth to seven sons and seven daughters. Pilchu Haram and Pilchu Burhi tried their best to prevent the brothers and sisters from marrying each other but failed. Feeling guilty they departed from this world. The eldest son, in the role of Jadab Guru, painted the portraits of his parents and performed Chokkhudan. In the ritual painting, the making of the eyes in the faces, is called chokkhudan or the offering of the eyes.
Thus was born the first Patua painter and with him the tradition of Patua Painting. Two myths related to the origin of the Patua painting are painted on either side of the fifteen feet tall stone slab.