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ओरण-Oran

ओरण-राजस्थान के पुनीत वन

राजस्थान में रहने वाले विश्नोई समुदाय के साथरी (मंदिरों) से जुडे़ पुनीत वन ओरण कहलाते है। संभवतः ओरण शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के उपारण्य शब्द से हुई है जिसका अर्थ छोटा वन या उपवन है। हर साथरी के साथ ओरण का जुड़ा होना आवश्यक है तथा विश्नोई समाज द्वारा यहां की लकड़ी काटना सर्वथा वर्जित है। ओरण अनेक पक्षियों तथा जानवरों को भी संरक्षण प्रदान करते हैं जिसमें कृष्ण-मृग, चीतल आदि है जिन्हें वन्य जीवन रक्षा एक्ट (1972) के अंतर्गत सुरक्षा प्राप्त है।

संग्रहालय परिसर मे पश्चिमी राजस्थान की लगभग लुप्त प्रायः पेड़-पौधों की प्रजातियों का रोपण किया गया। इनमें खेजड़ी, रोहेड़ा, खैर, फाग आदि प्रमुख हैं।

Oran – Sacred Groves of Rajasthan

Orans are sacred forests, attached to the Sathris (temples) of the Bishnoi community of Rajasthan. Possibly, the word ‘Oran’ is derived from the Sanskrit word Uparanya which means a small forest. It is mandatory for every Sathris to have an Oran, from where cutting of any tree is strictly prohibited, as per Bishnoi principles. Orans serve as refuge to many birds and are frequented by many animal species like Black-bucks and Indian Gazelles, which are receiving protection under the Wildlife Protection Act (1972).

In the museum campus, the Oran precinct has been designed with the plantation of rare and endangered species; collected from western Rajasthan. Major plant species in this precinct comprises prosopiscineraria (Khejari), Tecomellaundulata(Roheda), Capparisdedidua (Khair), and Calligonumpolygonoides (Phog).