इंगांरामासं की मुक्ताकाश प्रदर्शनी से
परोल: हिमाचल प्रदेश से पारंपरिक प्रवेश द्वार
हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित एक राज्य है जो ग्रेटर हिमालय पर्वत शृंखला के मध्य भाग में आता है। इसका विस्तार समुद्र तल से 1148 फीट से लेकर 22966 फीट ऊपर तक है। हिन्दू परम्परा के अनुसार हिमाचल प्रदेश हिन्दू देवी-देवताओं का निवास माना जाता है शायद इसी कारण इसे देव भूमि भी कहा जाता है। हिमाचल की अपनी एक परम्परागत वास्तुकला रही है जिसे यहाँ के मन्दिरों, महलों एवं घरों में देखा जा सकता है, इसी समृद्ध और विविधतापूर्ण वास्तुकला को संग्रहालय में दिखाने के लिये संग्रहालय के स्टाफ द्वारा सन् 2001-02 में हिमाचल के चम्बा, किन्नोर, ऊना, लाहुल- स्पिति एवं शिमला जिलों का दौरा किया गया। तत्पश्चात पारम्परिक वास्तुकला को एक द्वार के रूप में निर्माण कर दिखाने का निर्णय लिया गया। सन् 2001-02 में शिमला से देवदार की लकड़ी तथा धर्मशाला से कटे पत्थर, एक निश्चित माप में कटी स्लेटों एवं अन्य सामग्री का संकलन कर संग्रहालय लाया गया। उसके पश्चात वर्ष 2002 में कागड़ा से कलाकारों को श्री प्रेम धिमान के नेतृत्व में संग्रहालय आमंत्रित किया गया। कलाकारों द्वारा गेट का निर्माण प्रारम्भ किया गया। पारम्परिक निर्माण शैली के अनुरूप लकड़ी एवं पत्थरों को एक समान दूरी पर जोड़ा गया। लकड़ी के स्लीपरों के ऊपर पत्थर फिर लकड़ी की चिनाई की गई। छत पर स्लेटों को कीलो के सहारे से इस प्रकार लगाया गया है कि वे तेज हवा या भारी वर्षा से भी खिसक न सके। गेट के सामने लोग प्रमुखतः बाबा बालकनाथ, हनुमान तथा अन्य देवी-देवताओं की आकृति बनाते हैं जिससे प्रवेश करते समय उन्हें नमन किया जा सके ।
हिमालय के मन्दिरो में पगोडा, गुवंद, शिखर, शिवालय, सतलुज, पिरामिडिकल शैली के शिखर पाये जाते हैं। इस द्वार को बनाने के लिये कलाकारों द्वारा पगोडा, सतलुज एवं शिवालय शैली का मिश्रित प्रयोग किया गया है, जो कि हिमाचल के मन्दिरों, महलों एवं पारम्परिक घरों की वास्तुकला को प्रदर्शित करता है। इस तरह के द्वारों को हिमाचल में अधिकांशतः परोल के नाम से जाना जाता है। संग्रहालय में इसे सन् 2002 में द्वार क्रमांक एक पर निर्मित किया गया है।
From open air exhibition of IGRMS
Parol: Traditional Entrance Gate from Himachal Pradesh
Himachal Pradesh is a state situated in northern India, It lies in the central part of the Greater Himalayan mountain range. Its extension ranges from 1148 feet to 22966 feet above sea level. According to Hindu tradition, Himachal Pradesh is considered an abode of Hindu gods and goddesses, perhaps that is why it is also known as Dev Bhoomi. Himachal Pradesh has its own traditional architecture which can be seen in its temples, palaces and houses. To show this rich and vivid architecture in the museum, the staff of the museum, visited Chamba, Kinnaur, Lahul-Spiti, Una and Shimla districts of Himachal Pradesh in the year 2001-02. And, then it was decided to show case the traditional architecture by constructing a gate. In 2001-02, construction material like deodar wood, stone for walls, slates for roof and other materials were collected from Shimla and Dharamshala and brought to the museum. In the year 2002, artists from Kangra were invited to the museum to construct the gate under the leadership of Mr. Prem Dhiman. According to the traditional construction style, wood and stones were joined at an equal distance. Stones were laid on top of wooden sleepers, and again wooden sleepers were kept. The slates were fixed on the roof with the help of nails in such a way that even the strong wind or heavy rain cannot move them. In front of the gate, people mainly draw the figures of Baba Balaknath, Hanuman, and other deities, so that they can be saluted whenever they enter from this gate.
A huge variety is found in the Himalayan temples so for as making of their crown portion is concern. A mixture of pagoda, Sutlej and Shivalaya style has been used by the artists to make this gate, which combines the architecture of the temples, palaces and traditional houses of Himachal Pradesh. Such gates are mostly known as Parol in Himachal Pradesh. In the Museum, it has been built in the year 2002 at main entrance no. 1.