दशहरा रथ
क्षेत्र: बस्तर, छत्तीसगढ
संकलन वर्ष : 1988
बस्तर का दशहरा रथ
देश के अन्य हिस्सों में, दशहरा “राम” या देवी “शक्ति” की बुरी शक्तियों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाते है, परन्तु बस्तर में दशहरा, बस्तर की स्थानीय देवताओं में सर्वोच्च देवी “दंतेश्वरी माई” को संतुष्ट करने का अवसर है। एसा भी कहते है कि भगवान जगन्नाथ ने बस्तर पर शासन करने के लिए माई सुभद्रा को बारह पहियो वाला रथ भेट किया था जिसे माई सुभद्रा ने बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव को उपहार में दिया था | इस रथ को राजा ने दंतेश्वरी माई को अर्पित कर दिया तभी से बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर में दशहरा उत्सव में देवी जी डोली रख कर रथ परिक्रमा की शुरुआत हुई |
बारह पहियों वाला एक रथ बनाना कठिन था। राजा ने दो रथ रैनी रथ बनाने की अनुमति दी जिसमे– आठ पहिया वाला बड़ा रथ विजय रथ जिसे दशहरा उत्सव में, और चार पहिये वाला छोटा रथ फूल रथ,जिसे गोंचा उत्सव में चलाते हैं| रथ निर्माण श्रम विभाजन और कार्य विभाजन की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो खास गांवों और निर्दिष्ट समुदायों के बीच काम को बाट कर पूरी की जाती है | रथ पहियों क निर्माण में बिलारी गांव के लोग जंगली लकड़ी संग्रह करने पाटा जात्रा का आयोजन करते है |
रथ निर्माण की समग्र जिम्मेदारी पारंपरिक रूप से झाड़उमरगाँव और बेडा उमरगाँव के सवारा नाइक की होती है | इन दोनों गांवों के लोग रथ का निर्माण करते हैं |रथ के निर्माण कार्य शुरू होने से पहले श्रमिकों के उपकरणों की पूजा कर एक बकरे की बलि दी जाती है और शराब, चूड़ियाँ, कपूर, अगरबत्ती, नारियल और बाल देवी को भेट करते हैं। इसे बरसी उतरनी कहते है | रथ के पहिये बनाने और छिद्रों के छिद्रित करने से पहले पुनः देवी को भेट चढ़ाते है इसे नार फोडनी, कहते हैं|
रैनी रथ का आकार 32 फिट लम्बा और 18 फिट चौड़ा एवं 18 फिट ऊँचा होता है फूल रथ की साइज़ 32 फिट लम्बा 17 फिट चौड़ा और 17 फिट ऊँचा होता है | इस प्रकार रथ का निर्माण पूरा कर दशहरा उत्सव में देवी की डोली को आसन मे प्राण प्रतिस्ठा करके रखकर पूण्य क्षेत्र में रथ की परिक्रमा की जाती है|
Dussehara Rath
Area: Bastar Chhatisgarh
Year of Collection: 1988
Dussera Chariot of Bastar
The Dussera is celebrated in various parts of India to mark the victory of god “Rama” or the goddess “Shakti” over the evil powers. But in Bastar, Chhattisgarh it is an occasion to propitiate the supreme goddess “Danteshwari Mai” of the local pantheon. It is believed that “Bhagawan Jagannath” had gifted a chariot having twelve wheels to “Mai Subhadra” to rule the Bastar which she gifted to Purushottam Dev- the King of Bastar. And then the king offered it to “Danteshwari Mai” the supreme goddess of Bastar. Since then, during Dussera the Rath Parikrama is celebrated in Jagdalpur, the district headquarters of Bastar by placing palanquin of Goddess Danteshwari on it. As it was difficult to construct such a huge single chariot, the King allowed to construct two smaller chariots i.e. “Raini Rath” (Vijay Rath)-the eight wheel chariot used during Dussera festival and the “Phool Rath”- the smaller four wheel chariot used in Goncha festival.
The construction of “Rath” is a systematic process with division of labour and distribution of work among the specified villages and specified communities. People of Billari village organise “Pata Jatra” for collection of wood from Jungle to construct the wheels. The overall responsibility of the construction is traditionally vested in the “Savara Naiks” of villages “Jharumargaon” and “Beda Umargaon”. Villagers from these villages take up the construction of the chariot. Before starting the construction the tools and equipments are worshipped and a goat is sacrificed and liquor, bangles, camphor, incense sticks, coconut and hairs are offered to goddess. It is called Barsi Utarani. The same offerings are again given on the occasion occasion of Nar Fodni.
The size of “Raini Rath” is about 32 feet long, 18 feet wide and 18 feet high. The size of “Phool Rath” is about 32 feet long, 17 feet wide and 17 feet high. After completing the construction the palanquin is kept on the chariot and taken for the Parikrama during Dussera festival.