गौंड सृष्टि मिथक
कलाकार: श्री प्यारेलाल व्याम एवं श्री सुखनन्दी व्याम
क्षेत्र:मंडला, मध्यप्रदेश
पुराइन के पत्ते पर बैठे बढ़ा देव के मन में सृष्टि की रचना करने का विचार आया। इस काम के लिये मिट्टी चाहिये थी पर झाँक कर नीचे देखा तो वहीं जल ही जल था। अपनी छाती के मेल से बड़ा देव ने कौआ बनाया और उसे धरती की खोज-खबर लाने के लिये भेजा। उड़ते-उड़ते कौआ थक गया। तभी उसे पानी के बाहर निकला हुआ एक ठूंठ दिखा, जिस पर वह बैठ गया। उसके बैठते ही आवाज आई मेरे डट्ठे (पंजे) पर कौन बैठा?” आवाज ककरामल क्षेत्रीय (केकड़े) की थी। कौए ने आने का प्रयोजन बताया तो ककरामल बोला, पृथ्वी तो पाताल में चली गई है और वहाँ कीचकमल (कंचुआ) उसे खाये जा रहा है। अनुरोध करने पर रामल कीचकमल को पकड़ लाये और उसकी गर्दन पंजे से इतनी जोर से दबाई कि उसने मिट्टी उगल दी। मिट्टी लेकर कौआ बड़ा देव के पास लौट आया। कुछ मिट्टी से देव ने सारे जीव-जन्तु बनाये और बाकी को मकरामल (मकड़ी) के पानी के ऊपर बनाये जाल पर छवा दिया। सारे जीव-जन्तु और मनुष्य फिर इस धरती पर रख दिये गये। मनुष्य बोला “मैं क्या करूँ अपने बच्चों को क्या खिलाऊँ?” बड़ा देव ने अपने सिर के तीन बाल धरती पर फेंके जो आम सागौन और कस्सी के पेड़ों में बदल गये। देव ने मनुष्य को कुल्हाड़ी, कोटेला (बसूला) आदि औजार दिये और कहा- इन पेड़ों से कुछ बनाओ। मनुष्य काम में जुट गया, पर जैसे ही वह लक पर चोट करता, फड़की चिड़िया (कठफोड़वा) उसकी नकल करती। मनुष्य का ध्यान बैंट जाता और लकड़ी तिरछी हो जाती। एक-एक कर तीनों पेड़ खत्म होने को आये और बना कुछ भी नहीं। मनुष्य ने गुस्से से कोटेला फड़की चिड़िया पर फेंक कर मारा। चिड़िया उड़ गई और कोटेला भी आकाश में खो गया। पस्तहाल मनुष्य देव के पास लौटा और सारा हाल कह सुनाया। बड़ा देव ने धूनी की राख देकर उसे पेड़ की जड़ों में डालने को कहा और साथ ही यह कहा कि यदि लकड़ी बार-बार तिरछी हो रही है तो इसमें भी कोई राज छिपा होगा। राख डालते ही पेड़ो में फूल आ गये और फिर पेड़ों का जंगल हो गया। टेढी लकड़ी के राज को समझने में अक्षम मनुष्य ने उसे जोर से धरती पर मारा। चोट होते ही धरती में से बासिन कन्या (बाँस) और उसके भीतर छुपी अन्न माई निकल पड़ी। वह टेढ़ी लकड़ी ही पहला हल थी और तभी से मनुष्य खेती कर के अन्न उगाने लगा। अन्न फिर कभी खत्म न हो जाये इसलिये गौंडी स्त्री ने पुत्ती (दीमक की बामी) को देखकर लिल्लार कोठी की रचना की और उसमें समस्त संसार के लिये अनाज भर लिया।
यहाँ लिल्लार कोठी की भित्ति पर यह कथा दर्शाई गई है तथा कोठी की भीतरी छत को आकाश की तरह प्रयुक्त किया गया है।
THE GOND ORIGIN MYTH
Artists: Shri Pyarelal Vyam and Shri Sukhnandi Vyam
Region: Mandla, Madhya Pradesh
Floating on the Purain or Lotus leaf, Badadev felt like creating the universe. He looked around for clay but there was water all over. He made a crow out of the dirt rubbed of his chest and sent him to find the earth. The crow flew miles and when he was tired he sat on a claw. As soon as he sat on it, he heard a voice.” Who is sitting on my claw ?” The voice was Kakramal kshatriya’s (the crab warrior) When the crow explained the nature of his search, Kakramal told him that the earth had receeded to the netherworld where Keechakmal (the earthworm) was continuously gnawing at it. On the crow’s request, Kakramal brought him from there and squeezed his neck so that he spat the earth out. The Crow then flew back to Badadev taking the clay with which He created all the creatures. The remaining clay He thatched on the net that Makramal (the spider) had woven over the water surface and placed all the creatures on it. Thereafter the man asked, “What do I and my children eat?” Badadey broke three strands of hair from his head and threw them on the earth. They immediately turned into Mango. Teak and Kasi trees. Dev also gave him some tools and asked him to make something out of the trees. Man began the work, but whenever he struck the wood with the kotela (pickaxe), phadki (the woodpecker) sitting above, imitated him, the man got distracted, and the wood became crooked. Thus one by one all the three trees were cut down, without anything getting made in his anger he threw the kotela at Phadki. Phadki flew off and the kotela also disappeared in the sky. Dejected man once again came to Badadey to relate his woes. Badadev gave him some ash to put in the roots of those trees and asked him to ponder about what could be behind the wood becoming crooked again and again. As soon as he put the ash, the trees flowered. Beginning his work afresh, but unable to get to the secret of the crooked wood, in despair he hit the ground with the stick. No sooner had it struck the ground, than the basin kanya, the bamboo girl came out and from inside her emerged Anna mai, the grain goddess. The crooked stick infact was the first plough and ever since man has been farming with its aid. Further, taking inspiration from the anthill, the Gond woman made the Lillar Kothi or the mud granary to safekeep the grain for a long time to come. The story here is depicted on the Lillar Kothi itself wherein the inner arch of the granary is treated as the sky where the kotela and the bird disappeared.