बस्तर का दशहरा रथ
देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरा भगवान ‘राम’या देवी “शक्ति” की विजय उत्सव के रूप में मनाते है,परन्तु बस्तर में दशहरा, स्थानीय जनजातियों की आराध्य देवी “दंतेश्वरी माई” के पूजन एवं अनुष्ठान कर रथ संचालन के रूप में मनाने का पर्व है। भगवान जगन्नाथ ने बस्तर पर शासन करने के लिए माई सुभद्रा को सम्मान स्वरूप बारह पहिया वाला रथ भेंट किया था जिसे माई सुभद्रा ने बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव को उपहार में दिया था। इस रथ को राजा ने दंतेश्वरी माई के चरणों में अर्पित कर दिया तभी से बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर में दशहरा उत्सव में देवी जी की डोली रखकर परिक्रमा की शुरुआत हुई।
बारह चक्के के रथ बनाने एवं परिक्रमा करने में होने वाली दिक्कतों के कारण राजा ने रैनी रथ और फूल रथ नामक दो रथ बनाने की अनुमति दी। रैनी रथ आठ पहियों वाला बड़ा रथ विजय रथ है जिसे दशहरा उत्सव में और चार पहिये वाले छोटे रथ फूल रथ, को गोंचा उत्सव में चलाते हैं। रथ निर्माण श्रम विभाजन की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो निर्दिष्ट गावों और निर्दिष्ट समुदायों के बीच काम को बाँट कर पूरा किया जाता है। जंगल से लकड़ी का संग्रह करने के बाद पाटा जात्रा का आयोजन किया जाता है। पाटा लकड़ी का उपयोग रथ के पहियों के निर्माण में किया जाता है इस कार्य को ग्राम बेल्लारी के चालीस से पैतालीस ग्रामीण मिलकर करते हैं ।
रथ निर्माण की समग्र जिम्मेदारी पारंपरिक रूप से झाड़ उमरगांव और बेडा उमरगांव के सवारा नाइक की होती है। एक सौ तीस के आसपास ग्रामीण इन दोनों गांवों से आकर रथ का निर्माण करते हैं । निर्माण कार्य शुरू होने से पहले श्रमिकों के औजारों की पूजा कर एक बकरे की बलि दी जाती है और शराब,चूड़ियाँ कपूर, अगरबती, नारियल और बाल देवी को भेट किए जाते हैं। इसे बरसी उतरनी कहते है। रथ केपहिये बनाने और छिद्र करने से पहले पुनः देवी को भेंट चढ़ाते हैं इसे नर फोडनी कहते हैं।
रैनी रथ का आकार 32 फिट लम्बा और 18 फिट चौड़ा एवं 18 फिट ऊंचा होता है फूल रथ का आकार32 फिट लम्बा 17 फिट चौड़ा और 17 फिट ऊंचा होता है। इस प्रकार रथ का निर्माण पूरा कर दशहरा उत्सव में देवी की डोली को आसन में प्राण प्रतिष्ठा करके रखकर पुण्य क्षेत्र में रथ की परिक्रमा की जाती है।
यह उत्सव “पितृ-मोक्ष अमावस्या” के दिन “काछन माई” की पूजा के साथ प्रारंभ होता है। पहले मृतआत्माओं की पूजा की जाती है। तत्पश्चात मध्य रात्रि में “घाट-न्योता” की रस्म निभाकर दूसरे दिन सुबह-सुबह कलश वरुण देवता की स्थापना करके चौदह ब्राम्हणों द्वारा पूजा अर्चना कर, शाम को हल्बा जनजाति के साधु द्वारा “जोगी-बिठाई” (तपस्यारत) जाती है। इसके बाद सात दिनों तक दंतेश्वरी देवी की पूजा की जाती है और उत्सव में रथ द्वारा पुण्य क्षेत्र की परिक्रमा की जाती है। त्यौहार के दसवें दिन कुंवारी लड़कियों की पूजा की जाती है और शाम को तपस्वी तपस्या से उठकर बैठता है। जिसके बाद “मावली परघाव” होता है। इसमें दंतेवाड़ा से श्रद्धापूर्वक दंतेश्वरी की डोली में लाई गई मावली मूर्ति का स्वागत कर नए कपड़े में चंदन का लेप लगाकर उस मूर्ति को पुष्पाच्छादित कर दिया जाता है।
ग्यारहवें और बारहवें दिन “भितर-रैनी” और “बहार-रैनी” की रस्मे होती है और रथ की परिक्रमा जारी रहती है। तेरहवें दिन सुबह “काछन-जनना” का आयोजन होता है और शाम को सिरा-सार चौंक स्थितभवन में राजा या प्रशासन से जुड़े लोगों द्वारा गाँव माझी पुजारी, जाइक, पटेल, कोटवार, ग्राम सेवक और अन्य ग्रामीणों की समस्याओं को सुनकर उनका निदान किया जाता है और उपहार भी दिया जाता है। चौदहवें दिन,“गंगा-मुंडा” तालाब में विभिन्न स्थानों से लाए गए ग्राम देवताओं की विदाई अनुष्ठानिक प्रक्रिया के द्वारा की जाती है। “माँ-दंतेश्वरी” दंतेवाड़ा में अपने निवास पर लौट आती हैं और इसके साथ ही जगदलपुर में 75 दिनों तक चलने वाला दशहरा उत्सव समाप्त हो जाता है।
Dussehra Chariot of Bastar
The Dussehra is celebrated in various parts of India to mark the victory of god “Rama” orthe goddess “Shakti” over the evil powers. But in Bastar, Chhattisgarh it is an occasionto propitiate the supreme goddess “Danteshwari Mai” of the local pantheon. It is believed that “Bhagawan Jagannath” had gifted a chariot having twelve wheels to MaiSubhadra to rule the Bastar which she gifted to Purushottam Dev- the King of Bastar And then the king offered it to “Danteshwari Mai” the supreme goddess of Bastar. Since then, during Dussehra the Rath Parikrama is celebrated in Jagdalpur-headquarters of Bastar by placing palanquin of Goddess Danteshwari on it. As it wasdifficult to construct such a huge single chariot, the King allowed to construct two smaller chariots i.e.“Raini Rath” (Vijay Rath)-the eight wheel chariot used duringDussehra festival and the “Phool Rath”- the smaller four wheel chariot used in Goncha festival.
The construction of “Rath” is a systematic process with division of labour and distribution of work among the specified villages and specified communities. People of Beliari village organize “PataJatra” for collection of wood from Jungle to construct thewheels. The overall responsibility of the construction is traditionally vested in the “Savara Naiks” of villages “Jhar Umargacin” and “Beda Umargaon”. Villagers from thesevillages take up the construction work of the chariot Before starting the construction thetools and equipment’s are worshipped and a goat is sacrificed and liquor, bangles,camphor, incense sticks, coconut and hairs are offered to goddess. It is called Barsi Utarani. The same offerings are again given on the occasion “Nar Fodni”.
The size of “Raini Rath” is about 32 feet long. 18 feet wide and 18 feet high. The size of “Phool Rath” is about 32 feet long. 17 feet wide and 17 feet high after completing the construction work of chariot the palanquin is kept on it and taken for the Parikrama circumambulation during Dussehra festival.
The Festival starts on the Pitra Moksha Amavasya (new moon) with the worship of “Kachhan Mai”. At first the souls of the dead are worshipped, followed by ‘Ghat Nyota’ ritual in the midnight. Next day in the morning 14 Bramhin perform puja after istalling “Kalash”. In the evening a sage from Halba community starts his penance. After this goddess Danteshwari is worshipped for seven days and the chariot circumambulate the sacred area. On the 10thday of festival unmarried girls are worshipped. In the evening the sage finishes his penance. After this “Maoli Parghav” is performed. In this goddees Maoli, which is brought in the palanquin of goddess Danteshwari from Dantewada is worshipped.
On 11thand 12th day rituals of “Bhitar Raini” and “Bahar Raini” are performed and circumambulation of chariot continues on 13th day in the morning “Kachhan-Janna” is organized. In the evening the king as the higher officials of administration listen to theproblems of various village officials and other villagers and solve them Giffts are also distributed. On 14th day the farewell of the village gods came from various places is organised by performing/rituals at “Ganga Mund” Talab(Lake). Goddess Danteshwari returns to her abode at Dantewada and with this 75th days long Dussehra festival at Jagdalpur come to an end.