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थारू-Tharu

थारू

जिलाः उधमसिंह नगर

राज्यः उत्तराखण्ड

संकलन वर्ष: 1988

थारू मूल रूप से धान की पैदावार करने के साथ-साथ अपने पारंपरिक मछली पकड़ने की गतिविधि भी करते हैं। थारू लोगों का क्षेत्र थरवाट के नाम से जाना जाता है। बस्तियॉं निर्विवाद रूप से अत्यंत घनी होती हैं। वे अपने मकान आपस में इतने सटे हुए बनाते हैं कि कभी-कभी उनको अलग रूप में देखना मुश्किल होता है।

     मकान चौकोर होते हैं, जिनकी लंबाई चौड़ाई से लगभग तिगुनी होती है। मकान दोहरे ढलान वाली छप्‍पर या तो घास या फिर कबेलू की होते हैं। मकानों के सामने बड़े-बड़े आंगन होते हैं जहॉं खेतों से काटकर लाने के बाद फसल को रखा जाता है व उसकी गहाई की जाती है। आंगन में प्रवेशद्वार की तरफ ही एक छोटा सा मिट्टी का चौकोर चबूतरा बना रहता है। जिसमें परिवार के देवता की बैइक होती है। आंगन के दूसरे छोर पर पषुओं के रखने की जगह होती है तथा मुख्य घर के दायी ओर रसोई के लिए एक पृथक कमरा बना रहता है, जिसमें अनेक प्रकार के चूल्हे, भोजन बनाने व पानी भरने के बर्तन, अनाज व सब्जी रखने की टोकरी आदि रखी रहती है।      

Tharu

Dist.: Udhamsingh Nagar

State: Uttarakhand

Year of collection: 1988

Tharus are primarily paddy growing agriculturist who also practiced their traditional occupation of fishing. Their territory is known as Tharvat. The settlement in villages is very compact. They build houses so close to each other that some times it is difficult to isolate them from one another visually.

              The houses are rectangular in shape the lenth being almost three times then width. The Two-slope roof is either thatched with a local grass or tiled. The entrances are always from the front, sometimes two or three. In front is a continuous stretch of courtyards. Towards the entrance, a small rectangular, raised body of clay is made on the ground which is the seat of family deities. Towards the opposite side in the same courtyard is a cattle-shed. Situated at right angle to the main house is a small kitchen hut. It contains a variety of hearths cooking and water vessels and baskets for grains and vegetables.