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भील मिथक-THE BHIL MYTH

भील मिथक

कलाकार: श्री पेमा फात्या

क्षेत्र: झाबुआ, मध्यप्रदेश

धर्मी राजा के राज्य में यूँ तो सभी सुखी थे, धन-धान्य की कमी नहीं थी, लेकिन एक विचित्र शाप के चलते लोग हँसना-गाना, नृत्य-संगीत सब भूल गये थे। भला इसके बिना कौन-सा व्रत-त्यौहार, कौन-सा शादी-ब्याह सम्भव था? लिहाजा सब कुछ ठप्प पड़ा था। सच पूछो तो जीवन पूरी तरह से रुक गया था। शाप से मुक्ति दिलाने की शक्ति केवल हिमाली हारदा में थी, लेकिन वे कुँवारी देवी हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिये जो गया फिर कभी वापस नहीं लौटा। इस दुहरी समस्या का समाधान खोजने के लिये राजा ने बैठक बुलाई। यह कह कर पान का थाल घुमाया कि जो हिमाली हारदा को लाने का जोखिम उठाने को तैयार हो, वह पान का बीड़ा उठा ले थाल घुमाया गया लेकिन पान धर्मी राजा के पुत्र पिथोरा कुँवर के अलावा किसी ने नहीं उठाया। जाने से पहले पिथोरा कुँवर को उदास देखकर उनकी पत्नी ने इसका कारण पूछा। कारण सुनकर वह बोली “हिमाली हारदा तो मेरी बहन है, मेरी अंगूठी से आपको तुरन्त पहचान लेंगी और हाँ जब वह आपको खाट पर सोने को कहें तो बीच में खड़ी धारवाला खाण्डा (तलवार) जरूर रखियेगा। काठ्या घोड़े पर सवार हो पिथोरा कुँवर हिमाली हारदा के पास गये और उन्हें प्रसन्न करने में सफल हुए। हारदा ने उन्हें पूजा की तैयारी करने और पर्याप्त मात्रा में महुए की दारू तैयार रखने के लिये कहा। नियत समय पर हिमाली हारदा आई तथा पूजा से प्रसन्न हो नृत्य करने लगी। उन्होंने नाक से तूरी, शहनाई, जाँघ से ढोल-माँदर इसी प्रकार अपने विभिन्न अंगों से विभिन्न वाद्य बजाये। सारे लोग उनके साथ हँसते खिलखिलाते नृत्य-गान करने लगे। लौटते हुए हिमाली हारदा सात खण्डी धरती, कुँए-बावड़ी यहाँ तक कि आकाश गंगा को भी उर्वरा करती हुई गई।

चित्र के बाँयें ऊपरी भाग में पीले वस्त्र पहने धर्मी राजा का दरबार तथा घोड़े पर सवार पिथोरा कुँवर हैं, दाई ओर ऊपर पहाड़ों से घिरी हिमाली हारदा हैं। नीचे नृत्य-गान करते लोग, बावड़ी, धरती, आकाश गंगा आदि पिथोरा चित्रशैली में चित्रित हैं।

THE BHIL MYTH

Artists: Pema Fatya

Region: Jhabua, Madhya Pradesh

All was apparently well with Dharmi Raja’s kingdom, except that the people had forgotten how to laugh, sing and dance. Following this there were no celebrations and life had come to a standstill. A time also came when water of the wells stank and the fields became barren. It was believed that Himali Harda was the only one who could effect a change in the matter. But everyone knew that she was a hard to please maiden and nobody ever returned from her house. The king called an emergency meeting to look into the matter, the betel leaf of challenge was passed around and yet nobody except the king’s own son, Pithora dared pick it up.

Though Pithora Kunwar had taken the challenge up, he was nevertheless anxious. Seeing him nervous at the prospect, his wife assured him that Himali Harda was her sister and gave him her ring for identification. Also she added, When she asks you to sleep on the bed, do not forget to put your sword blade up in the centre.”

Pithora Kunwar went and eventually succeeded in pleasing Himali Harda. She then asked him to arrange for her worship in the village with the mandatory stock of wine brewed from the mahua fruit. Himali Harda came and was so pleased with the arrangements that she began to dance with joy. She played the clarinet with the nose, the drums with her thighs and so many more instruments with the other limbs. The entire village laughed and danced with her and on her way back, she restored the fertility of all the wells and fields and even revived the Milky way.

On the top left of the painting can be seen the Dharmi Raja in his court and Pithora Kunwar seated on the horse, on the right, Himali Harda surrounded by hills and below the dancing people, the brimming tanks and wells, the seven coloured earth and the rejuvenated Milky way.