जनजातीय आवास -Tribal Habitat
जनजातीय आवास
घर विश्व व्यापी रूप में मनुष्य व बाकी की दुनिया के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता हे, इस सीमा तक कि उसे ‘’एक शक्तिशाली भौतिक संस्कृति संस्थान’’ के रूप में पहचाना गया है। इसकी उतनी सशक्त अनुभूति और कहीं नहीं होती जितनी कि जनजातीय समुदायों के मध्य होती हैं।
भारतीय जनजातीय जनसंख्या जीविकोपार्जन के भिन्न तरीके प्रदर्शित करती है। यदि कुछ जनसमूह आखेट और संग्रहण द्वारा जीवन-यापन करते है तो अन्य पशुपालन जिसमें यायावरी पशुपालन तथा पशुपालन हेतु मौसमी आव्रजन सम्मिलित है। दूसरे अन्य वन काट कर खेती तथा स्थायी खेती करते है। कुछ लोहारी जैसे व्यवसाय करते हैं। बाहरी पर्यावरण तथा जीविकोपार्जन ऐसे दो कारक हैं जनजातीय आवास की अपनी एक अंतर्निहित संचार महत्ता है। उसका निर्माण ‘’मानवीय मानदंड पर मानवीय दक्षता से मानव उपयोग के लिए होता है।
‘’जनजातीय आवास’’ में देश के भिन्न क्षेत्रो के कुछ जनजातीय घरों को प्रदर्शित किया गया है। इस हेतु जनसमुदायों का चयन, संबंधित जनसमुदाय द्वारा अपने पर्यावरण से जीवनयापन हेतु दोहन के लिए सक्रिय संबंधे की विशिष्टता को दर्शाने के आधार पर किया गया है। साथ-साथ कुछ अन्य सांस्कृतिक गुण एवं जनजातियों की अपनी कुछ विशेषताएँ भी कारक रही हैं। प्रदर्शनी का उद्देश्य जनजातियों द्वारा आसपास उपलब्ध देशज सामग्री का उपयोग करते हुए साधरण किन्तु अति उपयोगी एवम् कुशल आवास-संरचना के निर्माण की गाथा को भी दर्शाना है। ये घर मात्र आश्रय या भंडारण स्थल न होकर जीवंत सांस्कृतिक संस्थाएँ है जिसके इर्द-गिर्द मनुष्य के समूचे जीवन चक्र का ताना-बाना बुना हुआ है।
Tribal Habitat
The house, universally plays an intermediary role between the human beings and their world and as such is to be such is to be recognized as a powerfully material cultural institution. This is nowhere to be so strongly felt as in the case of tribal populations. The tribal dweiling has a communicative significance of built form. It is generally built “On a human scale by human skills for human needs”.
The tribal populations of India have varied models of subsistence. Some are still in the hunting gathering and foraging state while others follow nomadic mode of life including nomadic pastoralism and transhumance, yet still others practice rudimentary agriculture, including swidden cultivation. The two factors, that of external environment and subsistence technology determine the character of tribal dwelling and the architecture.
The tribal habitat represents some of the tribal dwellings from different part of the country. The selection of populations represented was based primarily upon to highlight the adaptive relationship of subsistence activity to its environment as well as some characteristic of the tribes. The exhibition also aims to highlight the simple but highly functional and efficient structures that the tribal populations construct using indigenously available material in the scarce resource situation. These dwelling unit are not simply shelters or storages but vital cultural institutions around which the entire life-cycle of the people is woven.
- मोरूंग-MORUNG
- वारली आवास -WARLI HOUSE
- टोडा-TODA
- बोड़ो कछारी-BODO KACHARIS
- राठवा-RATHWA
- कोटा-KOTA
- गदबा-GADABA
- सौवरा-SAORA
- जातापु-JATAPU
- दशहरा रथ-DUSSEHARA RATH
- कोठा घर -KOTHA GHAR
- संथाल-Santhal
- चौधरी-Choudhri
- अगरिया-Agaria
- भील-Bhil
- मावली माता मंदिर–Maoli Mata temple
- थारू-Tharu
- वान्चो-Wanchoo
- नामता-Namta
- रेहांग की -Rehang-ki
- नेकमोंग -Nokmong
- कुनेमेची-Kunemeche
- लिम्बु-Limbu House
- भोटिया-Bhotia House
- स्मृति स्तंभ-Memorial pillar
- मोरुंग – Morung
- युवागृह-Youth Dormitory
- कमार आवास-Kamar House