कोठार (पारम्परिक अन्न भण्डार)
ग्राम: रामा
जिला: उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड
संकलन वर्ष : 2011
उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत जिला उत्तरकाशी के रवॉई घाटी (राजगढ़ी,पुरोला एंव मोरी तहसील) में बसे रवॉई समुदाय बहुत ही मेहनती व सरल स्वभाव के होते है, इनका मुख्य व्यवसाय कृषि व पशु पालन है। खेती से प्राप्त आनाज को ये लोग कोठार (अन्न भण्डार) के अन्दर रखते है। रवॉई समाज में कोठार (अन्न भण्डार) का प्रचलन बहुत ही पुराने समय से चला आ रहा है । कोठार लकड़ी की बनी एक छोटी घरनुमा संरचना है जिसे स्थानीय लोग अपने आवास के आस – पास बनाते है , इसे बनाने में आज भी कारीगर लोग कील का प्रयोग नही करतें है बल्कि लकड़ियों को इस प्रकार से एक दूसरें पर बिठाया जाता है कि कोठार सीधा व मजबूत खड़ा होता है। इसके आगे के खम्बो पर नक्काशी की जाती है जिस पर बेल,पत्ती व फूल इत्यादि जैसी आकृतियां बनी होती है जोकि देखने में सुन्दर व आकर्षक होता है । कोठार बनाने में यहां के लोग तीन प्रकार की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं जोकि यहां प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं इसमें चीड़ (सली), कैल (चीड़ की प्रजाति) एवं देवदार (दयार) की लकड़ी मुख्य है।पूर्व में देवदार की लकड़ी से ही कोठार को बनाया जाता था क्योकि देवदार की लकड़ी न तो बारिस में खराब होती है और न ही इसमें कीड़े, घुन इत्यादि लगते है।इस संरचना को इस तरह से बनाया जाता है ताकि इसे एक स्थान से दूसरें स्थान तक स्थान्तरित भी किया जा सके है। इसके नीचले हिस्सें को पत्थर, मिट्टी की सहायता से चार दीवारी तैयार कर इसके छ्त को लकड़ी व पठालो (स्थानीय पत्थर) की सहायता से ढ़क दिया जाता है । इस प्रकार पूरी संरचना जमीन
की सतह पर रखे पत्थर के ऊपर देववार की चार मोटे ,मजबूत तख्तो के सहारे टिका होता है जोकि एक भूकम्परोधी का कार्य करता है। इसके निचले भाग (गातर- कमर से नीचे) के अग्रभाग में एक छोटा सा दरवाजा तथा इसके दायें व बाये लकड़ी की ही बनी छिद्र युक्त खिड़कीनुमा संरचना होती है जिसके अन्दर मधुमख्खी प्रवेश कर अपना छ्त्ता बनाती है। इस कोठार में आनाज रखने हेतु खाने (गांजे) चार,पाँच या छः की संख्या में अपनी आवश्यकता के अनुसार बनाये जाते है। जिनमें अपने साल भर की खेती से कमाया गया अनाज जैसे गेहूं , धान , मंडुआ , झंगोरा, चौलाई, सरसों (लाई) व दाले आदि के साथ बहुमूल्य समानो व बड़े बर्तन को भी ऊपरी भाग में रखा जाता है जिसे स्थानीय भाषा में भण्डेली कहते है । भण्डेली के अन्दर बने प्रत्येक खाने (गांजें) में लगभग आठ से दस क्विंटल आनाज स्टोर कर सकते है। चूँकि खानो (गांजें) का तापमान इतना कम होता है कि उसमें रखा आनाज कभी खराब नही होता है और काफी समय तक सुरक्षित रहता है। कोठार का मुख्य द्वार काफी छोटा होता है अर्थात इतना चौड़ा होता है कि एक आदमी आसानी से बैठकर अपने सिर को झुकाकर अन्दर प्रवेश कर जाये। दरवाजे के ही अन्दर लकड़ी का एक ताला (अंगेल) बना होता है जिसे एस (S) आकृतिनुमा लोहे की चाबी से खोला जाता है तथा कोठार में एक लम्बी लोहे की चेन (सांगल) बँधी होती है जिसका एक सिरा कोठार के दरवाजे से तथा दूसरा सिरा मकान के शिर्ष पर बांधी घंटी से जोड़ दिया जाता है। ताकि कोठार में रखे आनाज व कीमति सामान चोरी से बच सके।
कोठार एक भण्डार ही नही बल्कि पहाड़ी संस्कृति का एक अभिन्न अंग भी है, जिसके बिना इनके घर अधूरे है। जिस परिवार के पास कोठार होता था उस घर को सर्वगुण सम्पन्न माना जाता था। जैसे जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे इनके रहन-सहन व तौर तरिकों में भी बदलाव आते गये। इतना बदलाव की आज कोठार का अस्तित्व खतरे में है। यहाँ तक कि आज इसका नाम भी लोगो के जुबान पर नही आता ।
इस पारम्परिक कोठार (अन्न भण्डार) का संकलन जिला उत्तरकाशी के रामा गॉंव से 2013 में संग्रहालय द्वारा किया गया था। जिसे संग्रहालय के मुक्ताकाश प्रर्दशनी हिमालय ग्राम में स्थापित किया गया है।
Kothar (A traditional granary)
Village: Rama
Dist.: Uttarkhashi, Uttrakhand
Year of collection: 2011
Settled in the Rawain valley of Rajgarhi Purola and Mori Block of Uttarkashi district, Uttarakhand; the Rawain community is hardworking. They practice simple agriculture and cattle breeding as their main occupations. Grains obtain through cultivation are stored in the Kothar (a grain bin). The use of Kothar in the Rawain society has been continuing from ancient times. Pine or Cedar wood is used for making Kothar as it helps in preventing damages from the rain and unwanted infestation of the woodworms and termite. Kothar is a small wooden structure similar to a house built by the people nearby their house. Even nowadays, artists do not use nails in the making of a Kothar. They use wooden pegs and set in a way that ensures the firmness of the structure and its longevity.
Carving is done on front pillars by engraving beautiful and attractive motifs of flowers, leaves and creepers. This structure is made in a way that it can be shift from one place to another. Its lower portion is a box-type enclosure made of four walls prepared by mud and stone. The roof is covered with wood and Pathaal (local stone). The entire structure is founded on the four thick and solid planks of Pine over the stone surface and this traditional technique is used by the locality from over a period of time and tested quite enduring to resist the earthquake to a great extent. The front portion of this enclosure has a small door and a window like wooden structure through which honeybee enters and make the comb.
As per requirements of the owner, four, five or six sections (Gaanje) are made for keeping food-grains like wheat, rice, paddy, mandua, jhangora, choulai, mustard and pulses obtained through cultivation and stored for their annual consumption. Besides, big utensils and valuables are kept on the upper part Bhandali. Eight to ten quintal of grains can be stored in each section beneath the Bhandali.
The temperature of Gaanje/Gaanja remains low and the grains stored are preserved for a longer time. The main door of Kothar is small and only one person can enter in sitting position by bowing the head. A wooden lock (Angail) situated inside the door opens with a wider ‘S’ shape iron key. A long iron chain is tied with Kothar at one end while the other end is fitted with a bell and allowed to fix on the top of the house so that sound of the bell rings while opening by an unauthorised person. In this way grains and other valuables in the Kothar are protected from being stolen.
Kothar is not merely a storage structure but also an inseparable cultural item of this hilly region and houses in the area appears incomplete without it. With the changing time, living pattern and modern life ways, the existence of Kothar eventually goes into the verge of extinction. People in the region started to leave maintaining Kothars as their pride possession of family households.
This traditional Kothar was collected by the museum from Rama village of Uttarkashi district in the year 2013 and is installed in the Himalayan Village open air exhibition of IGRMS with the help of the respective community.