गुग्गा पीर की कथा एवं अनुष्ठान
कलाकार: श्री प्रेमकुमार धीमान, श्री सुरेश धीमान, श्री संजीव राना, श्री कुशलचन्द्र एवं श्री कृष्ण चन्द्र
क्षेत्र: काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश
मरु देश के राजा जेवर सिंह तथा रानी बाछल ने बारह वर्ष तक गुरु गोरखनाथ की सेवा की और पुत्र प्राप्ति का वरदान पाया। अनन्तनाग के सबसे बड़े बेटे को, जो पृथ्वी पर जाने के भय से पेड़ के कोटर में जा छुपा था, गोरखनाथ ने मसल कर गुग्गल (धूपबत्ती) बना दिया। इस गुग्गल के धुँए को सूँघने से ही गुग्गादेव का जन्म हुआ। गुग्गादेव के जीवन से जुड़े बहुत से पर्चे (चमत्कार) गाये और सुनाये जाते हैं। अपनी बहन गुगड़ी को राज्य की ज़िम्मेदारी सौंपकर, वे बंगाल की राजकुमारी सिलियर से विवाह करने गये। बंगाल के जादू के प्रभाव से वे सब कुछ भूल गये और बारह साल तक वहीं रहे। गुगड़ी ने इस बीच अनेक लड़ाईयाँ लड़ी और फिर गुग्गाजी के पास कौए को संदेश देकर भेजा। कौए के कंकड़ मारते ही गुग्गाजी को सब याद आ गया। रानी सिलियर के साथ वे अपने देश पहुँचे ही थे कि उनके मौसेरे भाई- अर्जन और सर्जन ने उन पर हमला कर दिया। गुग्गा देव ने उन्हें मार डाला। इस बात से गुग्गा देव की माँ इतनी क्रुद्ध हुई कि उन्होंने गुग्गादेव को भी उसी स्थान पर मर जाने का श्राप दे डाला। माँ के वचन की रक्षा के लिए गुग्गादेव ने उसी स्थान पर समाधि ले ली। उदास रानी सिलियर को बिजली ने चारों दिशाओं में चमक कर, खबर लाकर दी कि गुग्गाजी पाताल में धर्मराज की दरगाह पर बैठे हैं। सती सिलियर ने गोबर से कमरा लीपा और दीया जलाकर आवाज लगाई तो दरगाह हिल गई और गुग्गापीर को आना पड़ा। गुग्गादेव फिर रोज रात आने लगे। और गोबर लिपा चौका जब सूख जाता तब वे चले जाते। इस बीच रानी सिलियर का साज-सिंगार देख माता बाछल को शक हुआ। सिलियर ने सारी बात बताई, तो माता बाछल ने
उन्हें गोबर में तेल मिलाकर कमरा लीपने को कहा ताकि वह सूखे ही नहीं। सिलियर ने वैसा ही किया, किन्तु गुग्गापीर इस धोखे से नाराज हो गये और तब से वे केवल सावन महीने में राखी के दिन से लेकर गुग्गा नवमी तक ही धरती पर आते हैं।
गुग्गापीर के स्थान पर कुल ग्यारह मूर्तियाँ बनाई जाती हैं :- नीले घोड़े पर सवार गुग्गापीर, भूरे घोड़े पर बहन गुगड़ी तथा मंत्री नाहर सिंह, अर्जन और सर्जन नामक जुड़वाँ भाई, गोरखनाथ, कपिला गाय तथा उसकी सेविका ब्राम्हणी, बाबा पहाड़िया देव तथा कोतवाल भज्जू और केलू ।
THE MYTH OF GUGGA PIR
Artists: Shri Prem kumar Dhiman, Sanjeev Rana, Kushalchandra and Krishnachandra
Region: Kangra, Himachal Pradesh
After serving Guru Gorakhnath for more than twelve years, King Jewar Singh and his wife Queen Bachhal had a son. Guru Gorukhnath had rolled the eldest son of the snake Anantnag into an incense (guggal) and given it to queen Bachhal. The queen conceived after smelling the incense and hence the child was named Gugga. When he grew up, he left for Bengal in the hope of marrying princess Siliar. Once there, he forgot everything and stayed there for twelve years. In his absence his sister Gugdi was managing the affairs alone. However faced by a crisis in the twelfth year, she sent a crow-messenger to Gugga. The crow threw a pebble at him and he recalled it all. But before Gugga and Siliar could enter the kingdom, his cousins, Arjan and Sarjan attacked him on the way and in defence, Gugga had to kill them. Gugga’s mother was so agrieved by this that she cursed Gugga, following which Gugga entered the earth at the spot where lay his cousins Lightening brought news to Sati Siliar that Gugga was alive and sitting on Dharmraj’s grave. Sati Siliar smeared her room with cowdung, lit a lamp and called for him. At her call, the grave shook and Gugga had to come. After that he came every night and stayed till the cow dung smeared floor dried. When Rani Bachhal came to know about it, she asked Siliar to mix oil with cow dung so that the floor does not dry at all. Gugga felt insulted by this deceit and thereafter refused to come every day. Thus ever since, he only visits the earth just once for a period of seven days between Rakhi and Gugganavmi.
Gugga’s shrine usually has eleven idols: Gugga Pir on his blue horse, Gugdi and the minister Nahar singh on a brown one, the cousins Arjan and Sarjan, Guru Gorakhnath, Kapila the cow with her caretaker Brahmani, Baba Pahariya Dev and the constables Bhajju and Kelu. The sacred altar of Gorukhnath, his sandals, clappers and an umbrella made from Tor leaves are also necessarily present in a Gugga shrine. Mostly people come here when bitten by a snake or for the treatment of such related illnesses.